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विद्युल्लताकी कथा ।
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रके लिए मङ्गल देशमें गया और वहाँसे वह एक सुन्दर घोड़ी खरीद कर लाया। उसने उस घोड़ीको राजाकी भेंट किया। राजाने प्रसन्न होकर सेठको बहुत धन दिया, उसका सम्मान किया और उसकी बहुत प्रशंसा की ।
एक समय सुरदेवने गुणसेन मुनिको विधिपूर्वक दान दिया । दान के फलसे देवोंने सूरदेव के घर पंचाश्रर्य किये ।
इसी कौशाम्बी में सागरदत्त नामका एक और सेठ रहता था। पर यह निर्धन था । इसकी सब संपत्ति नष्ट हो गई थी। इसकी स्त्रीका नाम श्रीदत्ता था और पुत्रका समुद्रदत्त । समुद्रदत्त सुरदेवके दानके फलसे जो पंचाश्चर्य हुए उन्हें देखकर मनमें विचारने लगा मैं गरीब हूँ तब मुनियोंको दान कैसे दे सकता हूँ । अस्तु, मैं भी कभी सुरदेवकी तरह धन कमाकर दान दूँगा । सच है- धनके बिना कुछ नहीं हो सकता । जिसके पास धन है उसके सभी मित्र हैं, सभी बन्धु हैं, वही मनुष्य है, और पंडित भी वही है । इस संसार में पराये आदमी भी धनवानोंके स्वजन हो जाते हैं, और गरीबोंके स्वजन भी पराये हो जाते हैं । ऐसा विचार कर कुछ मित्रोंको साथ लिए वह मंगल देशको चला । रास्तेमें मित्रोंने उससे पूछा- भाई, जान पड़ता है तुम तो दूर देशकी यात्रा के लिए चल रहे हो । तुमने हमसे चलते समय तो यह हाल नहीं कहा । अच्छा, तब यह तो बतलाओ कि इतने दूर देश चलते किस लिए हो ?
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