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सम्यक्त्व-कौमुदी
दान, बुद्धिवानमें शास्त्र और दुष्टसे कहा हुआ गुप्त रहस्य, ये सब बातें बहुत जल्दी फैल जाती हैं । इन वस्तुओंका स्वभाव ही ऐसा है। स्त्रियाँ जो न करें सो थोड़ा है । वे बदमाशोंके साथ रमती हैं, कुलकी मर्यादाको तोड़ देती हैं,
और गुरुजन, मित्र, पति, पुत्र वगैरह किसी को कुछ नहीं समझतीं । सुख, दुःख, जय, पराजय और जीवन-मरणकी बातोंको जो जानते हैं, ऐसे बड़े बड़े तत्वज्ञानी भी इन स्त्रियोंके जालमें फँस जाते हैं । झूठ, साहस, माया, मूर्खता, लोभ, अप्रेम और निर्दयता ये स्त्रियोंके स्वाभाविक दोष हैं। __ अशोकने विचारा-यदि मैं इसे घोड़े न दूं तो प्रतिज्ञा भंग होती है और बड़े आदमीको अपनी प्रतिज्ञाका भंग कभी न करना चाहिए । नीतिकरने कहा है--दिग्गज, कूर्मा वतार, कुलपर्वत और शेषनाग आदिसे धारण की हुई यह पृथ्वी तो चलायमान हो सकती है, पर महा पुरुषोंकी प्रतिज्ञा कभी नहीं डिगती __ अशोकने और भी विचारा-यदि मैं कमलश्री पर क्रोध करता हूँ, तो उसे घरका सब रत्ती रत्ती हाल मालूम है, तब संभव है कि वह जमीनमें गड़े हुए धनादिकको भी किसीको बतलादे । क्योंकि रसोइया, कवि, वैद्य भाट (चारण), शस्त्रधारी, स्वामी धनी, मूर्ख और अपना भेद जाननेवाले पर क्रोध करके उन्हें क्रोधित करना ठीक नहीं। अन्यथा ये मौका पाकर बड़ा अनर्थ कर डालते हैं। ऐसा विचार कर
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