________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्यक्त्व-कौमुदी
समुद्रदत्त बोला-समर्थों को भी क्या कोई बोझा लगता है ? व्यापारियोंके लिए क्या कोई देश दूर है ? विद्वानोंके लिए क्या कोई विदेश है ? और मीठे बोलनेवालोंका क्या कोई शत्रु होता है ? कौआ, कायर पुरुष, और मृग, परदेश जानेसे डरते हैं-आलस और प्रमादसे वे अपने ही स्थानमें पड़े पड़े मर जाते हैं। इस तरह बात करते करते वे लोग पलाश नामके गाँवमें जा पहुँचे। वहाँ समुद्रदत्तने उनसे कहाभाइयो, अब हमें यहाँसे साथ छोड़ देना पड़ेगा। इसलिए जहाँ कहीं हमारा माल बिक सके उन शहरों और गाँवों में माल बेच कर और खरीदने लायक माल खरीद कर तीन वर्ष बाद फिर हमें इसी स्थान पर आकर मिल जाना चाहिए।
ऐसी सलाह करके समुद्रदत्तके साथी वहाँसे चले गये। समुद्रदत्त रास्तेका हारा-थका था; इसलिए वह उसी गाँवमें रह गया। समुद्रदत्त जब अपने साथियोंसे बिछुड़ा तो उसे यह प्रवास अब बड़ा ही कष्टकर जान पड़ने लगा । नीतिकारने कहा है-पहले तो मूर्ख रहना, तथा युवा अवस्थामें दरिद्रताका होना ही दुःख है, परन्तु दूसरेके घर रहना और परदेशमें जाना तो उससे भी अधिक दुःखदायक है। ___ इस गाँवमें एक अशोक नामका गृहस्थ रहता था। वह घोडोंका व्यापार करता था। इसकी स्त्रीका नाम वीतशोका था । इसके एक लड़की थी । उसका नाम कमलश्री था।
For Private And Personal Use Only