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सम्यक्त्व-कौमुदी
__ उमयने विचारा-मैं बड़ा अभागा हूँ जो यहाँ पर भी आफ़तने मेरा पिंड न छोड़ा । नीतिकारने ठीक कहा है, कि भा. ग्यहीन मनुष्य जहाँ जाता है आफ़तें भी वहीं पहुँच जाती हैं। बेचारे एक गंजे सिरके आदमीको बड़ी तेज धूप लग रही थी। वह बेलके पेड़तले जा खड़ा हुआ । उसने विचारा-यहाँ मुझे धूप न लगेगी, लेकिन ऊपरसे एक बड़ा बेल गिरा और गंजेकी खोपड़ी फूट गई। ___ एक मल्लाहने एक मछलीको पकड़ा तो बड़े जोरसे, पर मछली उसके हाथोंसे निकल गई । निकल कर वह जालमें गिरी । जालसे भी किसी तरह वह निकल गई, पर निकलते ही उसे झटसे बगुला निगल गया। मतलब यह कि जब भाग्य ही उल्टा होता है तब मनुष्य आपत्तिसे बच नहीं सकता । इससे उमयको बड़ा वैराग्य हुआ।वह विचारने लगापराधीन रहना भी बड़ा कष्टदायक है । देखो, सम्पूर्ण तारामंडल जिसका परिवार है, जो औषधियोंका मालिक है, जिसका शरीर अमृतमय है और जो स्वयं प्रकाशमान है । ऐसा चन्द्रमा भी भूर्यका उदय होने पर फीका पड़ जाता है; सच है दूसरेके घर जानेसे सबको नीचा देखना पड़ता है। ऐसा विचार कर वह जिन मंदिर में पहुँचा । वहाँ उसने श्रुतसागर मुनिसे धर्मका उपदेश सुनकर सप्त व्यसनके त्याग पूर्वक दर्शन-प्रतिमा धारण कर श्रावकोंके व्रत लिये । उमय अब सच्चा श्रावक हो गया। इसके सिवा उसने अजान फलोंके.
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