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सम्यक्त्व-कौमुदीदिखाकर ) यह चोरीका माल है (राजा, मंत्री, और पुरोहितकी ओर इशारा करके ) और ये तीनों चोर हैं । यह कह कर यमदंडने एक पद्य पढ़ा, जिसका भावार्थ यह है, कि जहाँ राजा, मंत्री और पुरोहित ही जब चोर हैं, तब हम सब लोगोंको जंगलमें जाकर रहना चाहिए। क्योंक जिसकी शरणमें हम लोग हैं उसीसे हमें जब भय प्राप्त है-रक्षक ही जब भक्षक बन रहा है तब उसकी पुकार किसके पास की जाये ? यमदंडने महाजनोंसे और भी कहा-यदि आप लोग इस अन्यायी, अविवेकी राजाका परित्याग न करेंगे, इसे न छोड़ेंगे तो आप लोग भी पापके भागी होंगे । यह आपको याद रखना चाहिए । नीतिकारोंने भी कहा है कि
शत्रुसे मिले हुए. मित्रको, व्यभिचारिणी स्त्रीको, कुलको नाश करनेवाले पुत्रको, मूर्ख मंत्रीको, अविवेकी राजाको, आलसी वैद्यको, रागी देवको, विषयलम्पटी गुरुको, और दया रहित धर्मको, मोहके वश जो नहीं छोड़ता उसका कभी कल्याण नहीं होता। वह कल्याणसे वंचित ही रहता है। महाजनोंने भी उन तीनों चीजोंसे जान लिया कि राजा, मंत्री,
और पुरोहित ही चोर हैं। इसके बाद सबने विचार कर राजाको निकाल कर राजकुमारको गद्दी पर बैठाया, मंत्रीको निकाल कर मंत्रीपुत्रको मंत्री बनाया तथा पुरोहित निकाल कर पुरोहितके पुत्रको राज पुरोहित बनाया । जब ये तीनों शहरसे वाहर निकल रहे थे या निकाले जा रहे थे, तब लोग कहने
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