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चन्दनश्रीकी कथा ।
हो गया। मुनिने इसकी दशा देखकर इससे कहा-प्रिय, तू क्यों इतना दुखी हो रहा है ? ब्राह्मणने अपनी सारी दुःख कहानी मुनिराजसे कही । मुनि कहने लगे-भाई, जो पैदा होता है वह जरूर मरता है । बहुत प्रयत्न करने पर भी यह पापी काल किसीको नहीं छोड़ता | सबको अपना ग्रास बना लेता है । इस लोक और परलोकमें केवल एक धर्म ही हितकारी है और कोई नहीं । इस प्रकार मुनिके धर्मोपदेशसे ब्राह्मण शान्त हुआ। उसने श्रावकके व्रत लिये। अबसे यथाशक्ति वह दान, पूजादि पुण्य-कर्म करने लगा। आचार्य कहते हैं-थोड़ेसे थोड़ा भी दान देना अच्छा है । यह इच्छा करना ठीक नहीं कि जब हमारे पास बहुतसा इच्छित धन हो, तब ही हम कुछ करें। क्योंकि इच्छाके अनुसार कब किसको क्या मिला है ? मनुष्यकी इच्छाओंकी पूर्ति तो कभी हो ही नहीं सकती। इसीसे सोमदत्त दरिद्री होकर भी प्रतिदिन थोड़ा बहुत दान देता रहता था। एक दिन नगरसेठ गुणपाल उसे दरिद्र और गरीब श्रावक समझ कर अपने घर लाया और उसने उसका अच्छी तरह आदर-सत्कार किया। अबसे गुणपालने उसके निर्वाहका सब तरह उचित प्रबन्ध कर दिया। ग्रन्थकार कहते हैं-महापुरुषोंके संसर्गसे कौन मनुष्य गुणी और पूज्य नहीं होता ? मुनिके उपदेशसे ब्राह्मणको धर्म लाभ हुआ। वह गुणवान बना । सेठने उसके गुणोंकी परीक्षा कर उसे आश्रय दिया। स च है-गुणी पुरुषोंको ही गुणोंकी परीक्षा होती है । मूखौके
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