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सम्यक्त्व-कौमुदी -
राजाने कामलताको अभय दान देकर उसकी माता कुटिनी से पूछा- यह क्या बात है ? मेरे सामने तूने झूठ क्यों कहा ? कुटिनी बोली- महाराज, यह सब मेरा ही चरित्र है । मुझसे अपराध हो गया । मुझे क्षमा कीजिए। राजाने उसे भी क्षमा कर दिया ।
इधर धर्मका प्रभाव देख कर लोगोंने सोमाकी पूजा की, देवने पंचाश्रर्य किये । लोग कहने लगे-सच है धर्मके प्रभाव से सब कुछ हो सकता है ।
इधर महाराज भूभाग और गुणपाल सेठने तथा और कई लोगोंने जिन चन्द्रभट्टारकसे दीक्षा ग्रहण की। किसी किसीने श्रावक व्रत लिये तथा किसीने अपने परिणामोंको ही सुधारा । और महारानी भोगावती, गुणपालकी स्त्री गुणवती, सोमा तथा और कितनी स्त्रियोंने भी श्रीमती आर्थिक के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की। रुद्रदत्त वसुमित्रा और कामलता आदिने श्रावकों व्रत लिये |
यह कथा सुनाकर चन्दनश्रीने कहा- नाथ, मैंने यह सब वृत्तान्त प्रत्यक्ष देखा है, इस कारण मुझे दृढ़ सम्यदर्शनकी प्राप्ति हुई | अदासने कहा- जो तुमने देखा उसका मैं श्रद्धान करता हूँ, उसे चाहता हूँ और उस पर रुचि - प्रेम करता हूँ । अासकी और और स्त्रियोंने भी ऐसा ही कहा । लेकिन उन सबमें छोटी कुंदलता यही बोली - यह सब झूठ है । राजा, मंत्री और चोर अपने अपने मनमें विचारने लगे- कुंदळता पापिनी
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