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सम्यक्त्व-कौमुदी
राज्य करें। अन्यथा आपके लिए अच्छा न होगा। आपका और आपके राज्यका सत्यानाश हो जायगा। क्योंकि अयोग्य कार्यका प्रारंभ करना, सज्जनोंसे विरोध करना, बलवानोंसे स्पों करना और स्त्रियोंका विश्वास करना, ये चार बातें मृत्युकी द्वार हैं । इसलिए बलवानके साथ आपको युद्ध करना उचित नहीं। यह सुनकर जितारिने कहा-तू क्यों बक बक कर रहा है। युद्धमे मैं तेरे स्वामीका बल देखूगा कि वह बेचारा मेरे सामने ठहर सकेगा क्या ? जो होना होगा वह होगा । मैं भगदत्तको अपनी राजकुमारी नहीं ब्याह सकता। मेरा सर्वनाश भी क्यों न हो जाय, पर मैं अपनी प्रतिज्ञाको नहीं छोड़ सकता । महापुरुष जिस बातकी प्रतिज्ञा कर लेते हैं वे उसे फिर कभी नहीं छोड़ते। - यह कहते कहते राजाको बड़ा क्रोध आया। उसने दूतको मार डालनेकी अपने नौकरोंको आज्ञा दे डाली । तब मंत्रीने उससे कहा-महाराज, दूतका मारना अयोग्य है । दूतके मारनेसे राजा और मंत्री दोनों नरकमें जाते हैं । इस प्रकार राजाको समझा-बुझाकर मंत्रीने दूतको वहाँसे निकलवा दिया।
दतने आकर भगदत्तसे कहा-महाराज , जितारि अपने बाहुबलके सामने किसीको नहीं गिनता । यह सुन भगदत्त युद्धके लिए रणभूमिके सम्मुख हुआ । जितारि भी तब रणभूमिकी ओर बढ़ा । उसकी सेनाके भयसे दशों दिशाएँ चलायमान हो गई, समुद्र उछलने लगा, पातालमें शेषनाग
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