________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्मलताकी कथा ।
१०९
छोड़कर नीच मार्गका अवलम्बन नहीं ले सकती-मेरा हृदय इसे नहीं चाहता । ___ मृगर्मासको खानेवाले सिंहको जब भूख लगती है तब वह घास नहीं खाने लगता । इसी तरह कुलीन पुरुष आपत्ति आनेपर भी नीच कामोंको नहीं करते । आजतक महादेव अपने गलेमें कालकूट विष रक्खे हुए हैं, कछुआ-कूर्मावतार आज भी पृथिवीको अपनी पीठ पर उठाये हैं। और समुद्र वड़वानलको निरन्तर अपने उदरमें रखे रहता है, यह सब क्यों ? इसी लिए न ? कि बड़े पुरुषोंने जिस बातको एक वार स्वीकार कर लिया, फिर वे उसे कभी नहीं छोड़ते । इसी तरह ग्रहण किये हुए व्रत-नियमको छोड़ना उचित नहीं
और जो छोड़ बैठता है वह अभागा धन-धान्यादिसे रहित, कायर और सदा दुःखी रहता है । मनुष्यको सर्वदा अपना हित करना चाहिए। लोग तो तरह तरहसे बका ही करते हैं । पर वे कर कुछ नहीं सकते । संसारमें ऐसा कोई उपाय ही नही है, जिससे सब प्रसन्न रहें । एक आदमी सबको प्रसन्न रख भी नहीं सकता । इसलिए मैं जैनधर्मको छोड़कर बौद्धधर्मको स्वीकार नहीं कर सकती । यह सुनकर बुद्धगुरु पद्मसंघ अपने मठमें चला गया । __कुछ दिनों बाद पद्मश्रीके पिता दृषभदासका स्वर्गवास हो गया । पिताकी मृत्युसे पद्मश्रीको बडा दुःख हुआ। पर कालके आगे सब अवश हैं। प्रसंग पा एक दिन बुद्धदासने पद्म
For Private And Personal Use Only