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सम्यक्त्व-कौमुदी
हैं। आर्त-रौद्र ध्यानी गृहस्थोंको दान देना व्यर्थ है । उनकी भावनाओंमें पवित्रता बहुत थोड़ी होती है । जैसा कि एक जगह लिखा है__गृहस्थ लोग न तो निर्दोष शील ही पाल सकते हैं और न तप ही तप सकते हैं, किन्तु वे हर समय आर्तध्यानमें लगे रहते हैं। इससे उनमें शुद्ध भावनाएँ उत्पन्न न हो पातीं । इस बातको मैंने अच्छी तरहसे जान लिया कि दानके बिना संसार रूपी कूएसे हम गृहस्थ लोगोंका उद्धार नहीं हो सकता । हमारे लिए दान ही एक सुदृढ़ अवलम्बन है। इसलिए मुनियोंको दान देना चाहिए। क्योंकि मुनि ही मुक्तिके कारण हैं, आर्तध्यानी गृहस्थ नहीं। हाँ वे गृहस्थ मान्य हैं-उनका धर्म सबको प्रिय है, जो मुक्तिके कारण और संसारको प्रकाशित करनेवाले सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूपी रत्नत्रयके धारक हैं। पर यह स्मरण रखना चाहिए कि. उन्हें भी इस रत्नत्रयकी प्राप्ति उसी दानसे होती है जो बड़ी भक्तिसे दिया जाता है । ___ इसके बाद सोमप्रभने हाथ जोड़कर विश्वभूतिसे कहामुनिको दान देनसे आपको जो फल हुआ, उसका आधा मुझे भी देनेकी कृपा कीजिए और मेरे सुवर्णयज्ञका आधा फल आप ले लीजिए । उत्तरमें विश्वभूतिने कहा-समझदार पुरुष दरिद्र भी होगा तब भी वह नीतिको छोड़कर अन्याय न करेगा। मैं भी यद्यपि दरिद्र हूँ तो भी स्वर्ग और मोक्षके
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