________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९४
सम्यक्त्व-कौमुदी
झूठ बतलाती है। यह बड़ी पापिनी है। इसे सबेरे ही गधे पर चढ़ाकर शहरसे निकाल दूंगा। चोरने सोचा-यह सच है कि ऊँची जातिका होकर भी दुष्ट अपने स्वभावको नहीं छोड़ता। देखिए, अग्नि यदि चन्दनकी लकड़ीकी भी हो तब भी वह जलावेगी तो जरूर ही। उसी तरह ऊँचे कुलमें उत्पन्न होकर भी खल खल ही रहेगा-वह अपने स्वभावको न छोड़ेगा ।
५-नागश्रीकी कथा।
eostra विष्णुश्रीकी कथा सुनकर अहंदासने नागश्रीसे
यो कहा-प्रिये, अब तुम अपने सम्यक्त्वप्राप्तिका पा कारण बतलाओ । नागश्रीने तब यों कहना शुरू
- किया-बनारसमें जितारि नामका एक चंद्र""' वंशी राजा था । कनकचित्रा उसकी रानी थी। इसके एक लड़की थी। उसका नाम मुंडिका था । मुंडिकाको मिट्टी खानेकी बुरी आदत पड़ गई थी । इसलिए वह सदा रोगसे पीड़ित रहती थी।
राजमंत्रीका नाम सुदर्शन था । सुदर्शना मंत्रीकी स्त्री थी। एक समय वृषभश्री आर्यिकाने मुंडिकाको उपदेश देकर जैनी बना लिया। ग्रन्थकार कहते हैं कि परोपकार करना सत्पुरु
For Private And Personal Use Only