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सम्यक्त्व-कौमुदी
रिका यह उत्तर सुनकर भगदत्तको बड़ा क्रोध आया। वह जितारिपर चढ़ाई करनेकी तैयारी करने लगा। सुबुद्धि मंत्रीने उस समय भगदत्तसे कहा-महाराज, सब सामग्री इकट्ठी करके युद्धके लिए जाना अच्छा है । नहीं तो पराजित होना पड़ता है । इसके सिवा जिस पर चढ़ाई करना है उसके बलको भी देखना चाहिए । बिना इन बातों पर पूरा विचार किये युद्ध करनेवाले इस तरह मर जाते जैसे दीयेमें पतंग । विना किरणोंके जैसे मूर्यकी शोभा नहीं उसी तरह सैन्यके बिना राजाकी भी शोभा नहीं । क्योंकि एक नहीं, किन्तु समुदाय बलवान होता है । देखिए, एक तृण कुछ नहीं कर सकता, पर उन्हींकी रस्सी बन जाने पर बड़े बड़े हाथी भी बाँध लिये जाते हैं।
राजाको चाहिए कि वह ऐसे नौकर-चाकरोंको अपने यहाँ रक्खे जो चतुर हों, कुलीन हों, शूरवीर हों, समर्थ हों और भक्ति रखनेवाले हों।
महाराज, आपके पास ऐसे सेवक हैं, सैन्य है और सब सामग्री है तब आपको अकेले चढ़ाई करना ठीक नहीं। यह सुन भगदत्तने कहा-मेरा हित समझ कर जो तुमने कहा वह सब ठीक है । तुम मेरे हितचिंतक हो, तब तुम्हारा कहना मुझे मानना ही चाहिए । तुम्हारी बात न माननेसे उल्टा मेरी हानि है । भगदत्तने तब चढ़ाई सब सेना वगैरहको साथ लेकर ही की।
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