SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी - राजाने कामलताको अभय दान देकर उसकी माता कुटिनी से पूछा- यह क्या बात है ? मेरे सामने तूने झूठ क्यों कहा ? कुटिनी बोली- महाराज, यह सब मेरा ही चरित्र है । मुझसे अपराध हो गया । मुझे क्षमा कीजिए। राजाने उसे भी क्षमा कर दिया । इधर धर्मका प्रभाव देख कर लोगोंने सोमाकी पूजा की, देवने पंचाश्रर्य किये । लोग कहने लगे-सच है धर्मके प्रभाव से सब कुछ हो सकता है । इधर महाराज भूभाग और गुणपाल सेठने तथा और कई लोगोंने जिन चन्द्रभट्टारकसे दीक्षा ग्रहण की। किसी किसीने श्रावक व्रत लिये तथा किसीने अपने परिणामोंको ही सुधारा । और महारानी भोगावती, गुणपालकी स्त्री गुणवती, सोमा तथा और कितनी स्त्रियोंने भी श्रीमती आर्थिक के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की। रुद्रदत्त वसुमित्रा और कामलता आदिने श्रावकों व्रत लिये | यह कथा सुनाकर चन्दनश्रीने कहा- नाथ, मैंने यह सब वृत्तान्त प्रत्यक्ष देखा है, इस कारण मुझे दृढ़ सम्यदर्शनकी प्राप्ति हुई | अदासने कहा- जो तुमने देखा उसका मैं श्रद्धान करता हूँ, उसे चाहता हूँ और उस पर रुचि - प्रेम करता हूँ । अासकी और और स्त्रियोंने भी ऐसा ही कहा । लेकिन उन सबमें छोटी कुंदलता यही बोली - यह सब झूठ है । राजा, मंत्री और चोर अपने अपने मनमें विचारने लगे- कुंदळता पापिनी For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy