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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन्दनश्रीकी कथा । ७७ महाराज, मैंने नहीं मारा । मैं जैनधर्मावलम्बिनी हूँ और जैनधर्म दयामय है। जीवहिंसासे नरकोंमें दुःख और जीक रक्षासे स्वर्ग-सुख मिलता है । इसलिए सुखाभिलाषी जीवहिंसा कभी नहीं करते । यह बात सब जानते हैं कि पापसे दुःख और धर्मसे सुख होता है । इसलिए सुख चाहनेवालोंको पाप छोड़ कर धर्म ही करना चाहिए। इस प्रकार धर्मकी थोडीसी व्याख्या कर सोमाने पहलेका सब वृत्तान्त राजासे कह सुनाया। कुटिनीसे न रहा गया सो उसने घड़ेकी ओर इशारा करके राजासे कहा-कि इसमें सर्प है। सोमाने सब लोगोंके सामने हाथ डाल कर साँपको बाहर खींच लिया । साँप फिर माला हो गया। __और जब कुटिनीने उसे हाथमें लिया तो वह फिर साँप हो गया । कई बार ऐसा ही हुआ । लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ। तब कुटिनीने कहा-यदि मेरी लड़की फिरसे जीवित हो जाय तो मैं कह सकती हूँ कि सोमा शुद्ध है, निर्दोषी है। अन्यथा नहीं । यह सुनकर सोमाने शुद्ध हृदयसे जिनेन्द्र भगवान्की स्तुति की, और उन्हें हृदयमें धारण कर अपना हाथ कमलताके शरीर पर लगाया। आश्चर्य है कि उसके हाथ लगाते ही कामलताका विष तत्काल दूर हो गया । कामलता मूर्छा छोड़ उठ बैठी। ग्रन्थकार कहते हैं-जिनेन्द्र भगवान्का स्तवन करनेसे विनोंका नाश होता है, डाकिनी, भूत-पिशाच और सादिक भाग जाते हैं तथा विष उतर जाता है । तब For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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