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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी सोमाके घर आई और उसने सोमाका रूप देखा, तो उसका सिर घूमने लगा। वह मनमें कहने लगी-सोमा इतनी सुन्दरी है। यदि रुद्रदत्त इस पर मोहित हो गया तब तो हमारा जीवन निर्वाह ही कठिन हो जायगा। इसलिए इसे किसी तरह मार डालना ही उचित है । ऐसा निश्चय कर उस कुटिनीने एक घड़ेमें नीचे तो एक भयंकर काले साँपको रक्खा और ऊपरसे उसमें फूल भरकर उसे सोमाके हाथमें दे कहा-पुत्री, इन फूलोंसे तू देवपूजा करना । सोमाने फूलोंको लेनेके लिए घड़ेमें हाथ डाला, पर क्या आश्चर्य है कि उसके पुण्यप्रभावसे साँपकी जगह फूलोंकी माला बन गई। यह देख कुटिनीको संदेह हुआ कि मैंने न जाने घड़ेमें साँप रक्खा या नहीं। उसे इसका बड़ा आश्चर्य हुआ। सब संघको जिमाकर सोमाने वसुमित्रा, कामलता और रुद्रदत्तको भी बढ़े आदरसे जिमाया और उन्हें वस्त्राभूषण दिये । अन्तमें जाते समय उसने कामलताको आशीर्वाद देकर वह माला उसके गलेमें डाल दी। देखते देखते उस मालाका सर्प होकर उसने कामलताको डस लिया। वह मूर्छा खाकर जमीन पर गिर पड़ी। यह देख कुटिनीने हल्ला मचाया और साँपको घड़ेमें रखकर वह राजाके पास दौड़ी हुई पहुँची। राजासे उसने कहा-महाराज, गुणपालकी लड़की सोमाने मेरी लड़की कामलताको मारडाला । यह सुनकर राजाको बड़ा क्रोध आया। सोमा बुलवाई गई। वह आई। राजाने उससे पूछाबिना कारण तुने कामलताको क्यों मारडाला ? सोमाने कहा For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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