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सम्यक्त्व-कौमुदी
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करनेवाले जिनचन्द्र भट्टारकका मैं शिष्य हूँ । पूर्व देशमें परिभ्रमण करके, वहाँ भगवान्के पाँचों कल्याणोंकी भूमियोंकी वन्दना कर अब शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ भगवान्के जन्मस्थानके दर्शन करने आया हूँ। यह सुनकर सेठने कहा-वह नर धन्य है जिसके दिन धर्मध्यानमें बीतते हैं । इसके बाद सेठने उससे पूछा-आपकी जन्मभूमि कहाँ है ? ब्रह्मचारीने कहा-इसी नगरमें सोमशर्मा ब्राह्मण रहता था । उसकी स्त्रीका नाम सोमिला था। मैं उन्हींका इकलौता लड़का हूँ। अपने माता-पिताकी मृत्युसे मुझे बहुत दुःख हुआ । उसी दुःखके मारे मैं तीर्थयात्राको निकल गया । काशीमें जिनचन्द्र भट्टारकने मुझे धर्मोपदेश दिया । उनके उपदेशमें मैं ब्रह्मचारी हो गया।
सेठजी, गोत्र और देशसे क्या प्रयोजन ? यह सब तो विनाशीक हैं । मुझे तो एक धर्म ही शरण है, जिससे सब सिद्धि होती है। धर्मकी महिमा तो देखिए, कि जिसके प्रभावसे धन चाहनेवालोंको धन-प्राप्ति, काम-पुरुषार्थके चाहनेवालोंको काम-पुरुषार्थकी प्राप्ति, सौभाग्यके अभिलाषियोंको सौभाग्यप्राप्ति, पुत्र बांछकोंको पुत्र-प्राप्ति, तथा राज्य चाहनेवालोंको राज्य-प्राप्ति होती है । अर्थात् धर्मात्मा पुरुष जो कुछ भी चाहे उसे उसकी प्राप्ति अवश्य होती है । स्वर्ग और मोक्ष भी जब धर्म-प्रभावसे मिल सकता है तब और वस्तुओंकी तो बात ही क्या है । इस प्रकार ब्रह्मचारीने धर्मकी बड़ी महिमा गाई। उसकी
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