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अर्हद्दास सेठकी कथा ।
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जन्म परोपकारार्थ ही हुआ है । चोरने सेठकी स्तुति - प्रशंसा कर कहा- मुझे पानी पिला दीजिए। आपका बड़ा उपकार होगा। सेठजी यह जानते थे कि इसे पानी पिलाना राजाकी आज्ञाके विरुद्ध है । पर उसकी बातें सुनकर उनका चित्त पिघल गया । उन्होंने कहा- भाई, मैंने बारह वर्ष तक अपने गुरुकी सेवा की, आज प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे एक मंत्र बताया है। अब इस समय मैं यदि पानी लेने चला जाऊँ तो वह मंत्र भूला जाता हूँ । इसलिए मैं नहीं जाता। चोर ने पूछा- उस मंत्रसे क्या सिद्धि होती है ? सेठने कहा - इसका नाम पंच नमस्कार मंत्र है। इससे देवोंकी संपदा मिलती है, मुक्तिरूपी लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है, चारों गतियोंके दुःख मिट जाते हैं, पापोंका नाश होता है, पापमें प्रवृत्ति नहीं होती, और मोहका क्षय होता है। जिस मंत्रका ऐसा माहात्म्य है, वह पंचनमस्कारात्मक देवता हम सबकी रक्षा करे । हजारों पापों और सैकडों जीवोंका वध करनेवाले बहुतसे हिंसक जीव भी इस मंत्रकी आराधना करके मोक्षको गये । यह सुनकर चोरने कहा - अच्छा तो जबतक आप पानी लेकर आते हैं तबतक मैं इस मंत्रको याद रक्खूँगा, इसका पाठ किया करूँगा । इसलिए आप मुझे इस मंत्रको सिखा दीजिए । सेठने चोरकी बात मानली । उसे मंत्र सिखाकर वे पानी लेने चले गये। इधर मंत्रका पाठ करते करते ही चोरने प्राण छोड़ दिये । इस पंच परमेष्ठी मंत्र के
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