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सम्यक्त्व-कौमुदी
माहात्म्यसे वह सौधर्मस्वर्गमें सोलहों प्रकारके आभूषणोंसे भूषित और अनेक देव-देवांगनाओंसे युक्त देव हुआ। इधर कुछ देर बाद सेठ पानी लेकर चोरके पास आये । चोरको मरा देखकर सेठने विचारा-जान पड़ता है, यह समाधि मरण कर स्वर्ग गया। मैंने तब पिताजीसे कहा-पिताजी, सत्संगतिसे किसके पाप दूर नहीं होते ? वे वहाँसे लौटकर फिर अपने गुरुके पास गये । उन्होंने सब वृत्तान्त उनसे कहा। उस दिन उपवास कर वे गुरुके पास चैत्यालयमें ही रहे । गुरु महाराजने वह सब वृत्तान्त सुनकर कहा-महा पुरुषोंके संसर्गसे सभीको ऊँचे पदकी प्राप्ति होती है । पानीकी बूंद गरम लोहे. पर यदि पड़ती है तो उसका नाम निशान भी नहीं रहता; लेकिन वही बूंद कमलपत्र पर पड़नसे मोती जैसी मालूम पड़ती है और समद्रकी सीपमें पड़ जाये तो वह मोती ही बन जाती है । मतलब यह कि वस्तुको जैसी जैसी संगति मिलती जायगी उससे उसमें वैसे वैसे ही गुणोंका समावेश होता जायगा। मनुष्योंमें भी जो उत्तम, मध्यम, और जघन्य गुण देखे जाते हैं, बहुधा वह संसर्गहीका फल है । गलियोंका पानी जब गंगाजीमें मिल जाता है तब बड़े बड़े देवता भी उसे माथे पर चढ़ाते हैं-उसे नमस्कार करते हैं। यह सब माहात्म्य महा पुरुषोंकी संगतिका है । महा पुरुषोंकी संगतिसे सबको उच्च पदकी प्राप्ति होती है । गुरुजी महाराज इतना कह कर चुप हो रहे।
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