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सम्यक्त्व-कौमुदी
है, पर पुत्र के लिए तो ऐसा करनेमें दोष नहीं है । इस वि. वादमें सेठको हार माननी पड़ी। जैसे तैसे उन्होंने विवाह करना मंजूर किया।
इसी नगरमें जिनदत्ताके काकाकी लड़की कनकधी रहती थी । जिनदत्ताने अपने काका और काकीसे अपने पति अर्हद्दासके लिए कनकधीकी मँगनी की । उत्तरमें उन दोनोंने कहा-सौतके रहते हम अपनी लड़कीको नहीं दे सकते । तब जिनदत्ताने कहा-मेरी आप चिन्ता न करें, मैं तो सिर्फ भोजनके समय घर पर आया करूँगी और दिन रात जिनमंदिरमें ही रहा करूँगी। मेरा घर-बारसे कोई वास्ता नरहेगा । कनकधी ही घरकी मालकिन होकर रहेगी। मैं इस बातकी शपथ करती हूँ। बन्धुश्रीने तब जिनदत्ताकी बात मानली । शुभ मुहूर्तमें विवाह हो गया। अबसे जिनदत्ता जिनमंदिरमें और नवलवधू कनकधी तथा वृषभदास सेठ घरमें सुखसे रहने लगे। एक दिन कनकश्री अपने मायके आई । तब उसकी माने उससे पूछा-पुत्री, अपने पतिके साथ तू सुखसे तो रहती है न ? कनकधी बोली-मां, मेरा पति तो मुझसे बातचीत भी नहीं करता
और तो मैं क्या कहूँ ? सौतके रहते हुए जब तूने मेरा विवाह कर दिया, फिर सुखकी बात क्या पूछती है ? सिर मुड़ाकर नक्षत्र पूछनेसे क्या लाभ ? मेरी सौत जिनदत्ताने मेरे पतिको सब तरह अपने पर लुभा रक्खा है । वे दोनों हर समय जिनमंदिरमें रहते हैं और वहीं पर आनन्द उड़ाते हैं। दोनों वार भोजन
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