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सम्यक्त्व-कौमुदी
ज्ञान होना तथा संग्राममें शूरवीर होना, इन लक्षणोंसे युक्त था। सेठकी खीका नाम जिनदत्ता था। वह भी सम्यग्दर्शनादि गुणोंसे परिपूर्ण थी, बड़ी धर्मात्मा थी । जो स्त्री पतिके अनुकूल चलनेवाली हो, संतोषवती हो, चतुर हो, प्रतिव्रता हो और समझदार हो, वह साक्षात् लक्ष्मी ही है, इसमें कोई संदेह नहीं। जिनदत्ता भी ऐसी ही थी । परन्तु वह बाँझ थी। किसी भी उपायसे उसके पुत्र नहीं हुआ। एक -दिन मौका देखकर जिनदत्ताने अपने स्वामीसे कहा-नाथ, पुत्रके बिना कुलकी शोभा नहीं होती और वंशका उच्छेद हो जाता है । इस कारण संतान उत्पत्तिके लिए आपको दूसरा विवाह करना चाहिए । देखिए, नीतिकारने क्या अच्छा
__हाथीकी मदसे, सरोवरकी कमलोंसे, रात्रिकी पूर्ण चन्द्रमासे, वाणीकी व्याकरणसे, नदीकी हंस-हंसनियोंके जोड़ेसे, सभाकी पंडितोंसे, स्त्रियोंकी शीलसे, घोड़ेकी वेगसे दौड़नेसे, मन्दिरोंकी प्रति दिन होनेवाले उत्सवोंसे, पृथ्वीकी राजासे और तीनों लोकोंकी धर्मात्माओंसे जैसी शोभा होती है वैसी ही सुपुत्रसे कुलकी शोभा है। और भी कहा है
शर्वरी दीपकश्चन्द्रः प्रभाते रविदीपकः ।
त्रैलोक्यदीपको धर्मः सत्पुत्रः कुलदीपकः ॥ अर्थात्-रात्रिका दीपक चन्द्रमा है, प्रातःकालका दीपक सूर्य है, तीनों लोकोंका दीपक धर्म है, और कुलका दीपक
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