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मित्रश्रीकी कथा ।
करने घर आते हैं और फिर चले जाते हैं । मैं घरमें रातको अकेली ही पड़ी रहती हूँ। इसीसे दिनों दिन दुबली होती जाती हूँ। कनकश्रीने अपनी मांको मायाचारीसे ये सब झूठी बातें कह कर खूब भर दिया । बन्धुश्रीने तब कहा-देखो, रतिके समान सुन्दरी मेरी लड़कीको छोड़कर वह बूढ़ा उस बदसरत बुढ़ियाके साथ भोग-विलास करता है । सच है कामी पुरुषको योग्य अयोग्यका विचार नहीं रहता। नीतिकारने ठीक कहा है-कवि लोग अपने काव्यमें क्या क्या नहीं कहते, योगियोंसे छुपा हुआक्या है, विरुद्ध लोग अपने शत्रुके सम्बन्धमें क्या नहीं कहा करते, इसी तरह कामी जन भी क्या नहीं करते ? लेकिन आश्चर्य है कि उस बूढ़ेको ऐसा करनेमें लाज भी नहीं आती। यह सब कामदेवकी महिमा है जो बड़े बड़े साधु-सन्तोंकी भी वह विटम्बना कर डालता है। एक नीतिकारने क्या ही अच्छा कहा है-यह कामदेव कलामें प्रवीण मनुष्यको क्षण भरमें विकल कर डालता है, बड़ी भारी शुद्धतासे रहनेवालेको दिल्लगीहीमें उड़ा देता है, पंडितोंकी विटम्बना कर डालता है और धीरको अधीर बना देता है । इसके बाद बन्धुश्रीने अपनी लड़कीसे कहा-पुत्री, तू चिन्ता मत कर, जिस उपायसे तेरी सौत जिनदत्ता मरेगी मैं वही उपाय करूँगी । इस तरह बन्धुश्रीने अपनी लड़की कनश्रीको समझा बुझाकर-संतोष देकर उसे पतिके घर भेज दिया और आप जिनदत्तासे बैर ठान कर बैठ रही । एक दिन बहु
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