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सम्यक्त्व-कौमुदी
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इसके पास आँखोंमें आँजनेका एक ऐसा अंजन है कि उसे
आँज लेने पर इसे कोई देख नहीं पाता । राजाने पूछा-यह कहाँ जा रहा है ? इसीके साथ हमें भी चलना चाहिए । ऐसा विचार कर दोनों उसके पीछे पीछे हो लिये । वह चोर धीरे धीरे अहंदास सेठकी दीवालके ऊपर जो बड़का पेड़ था, उस पर चढ़कर कोई न देख सके इस तरह वृक्षकी आड़मे छुप गया। राजा और मंत्री भी उसी पेड़के नीचे छुप कर बैठ गये । पहले कह आये हैं कि नगरकी सब स्त्रियाँ राजाकी आज्ञासे कौमुदी महोत्सव मनानेको उपवनमें गई हैं और नगरके लोग अपने अपने घरोंहीमें आनन्द मना रहे हैं। लेकिन अहंदास सेठकी आठों स्त्रियों ने इस उत्सवमें भाग नहीं लिया। राजाकी आज्ञासे आठों स्त्रियोंने और सेठने अपने घरके चैत्यालयमें हीधर्मोत्सव मनाया । यहाँसे आगे फिर कथा आरंभ होती है। ___ अर्हदास आठ दिनका उपवासा था। उसने अपनी स्त्रियोंसे कहा-राजाकी आज्ञासे आज नगरकी सब स्त्रियाँ क्रीड़ा करने उपवनमें गई हैं, तुम भी जाओ । मैं अपना धर्म-साधन यहीं करता हूँ। यदि तुम न जाओगी तो राजाकी आज्ञाका भंग होगा । आज्ञा भंग होने पर राजा सर्पकी तरह भयंकर हो उठेगा और सब तरहसे अपना अनिष्ट कर डालेगा। क्योंकि नीतिकारोंने कहा है कि सॉपका डसा तो मणि, मंत्र और औषधि आदिसे अच्छा होता देखा गया, पर राजाके दृष्टि रूपी विषका मारा हुआ कभी जीता न देखा गया ।
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