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उदितोदय राजाकी कथा।
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हो जाता है । इसलिए जो राजाको अनर्थोंसे बचाता है, कुमार्गसे उसकी रक्षा करता है, वही राजाका परम मंत्री है। यह सुनकर सुबुद्धि मंत्रीने कहा-महाराज, अपने स्वामीका हित करना यही तो मंत्रीका कर्तव्य है । राजा बोला-तुम संसारमें सचमुच सत्पुरुष हो । तुम्हारे होनेसे ही मैं बड़े भारी अपयश और दुर्गतिसे बच गया । नीतिकारोंने क्या ही अच्छा कहा है-मूोंकी संगतिसे गुणोंका नाश होता है, पापमय विचारोंसे धनका नाश होता है, युवतिके सम्पकसे तप नष्ट होता है और नीचोंके साथ रहनेसे बुद्धि मलिन होती है । इत्यादि प्रकारसे सुबुद्धि मंत्रीकी राजाने बड़ी प्रशंसा की और कहा-अच्छा तो अब रात बिताने और मनोविनोदके लिए कहीं नगरहीमें घूम आवे । वहाँ कुछ न कुछ कौतूहल देखेंगे । क्योंकि सोते रहना तो अच्छा नहीं । समझदारोंका समय तो धर्म-चर्चा अथवा मनोविनोदसे बीतता है । हाँ गँवार लोग जरूर अपने समयको सोनेमें, या दंगा फिसादमें बिताते हैं । मंत्री बोला-अच्छी बात है, चलिए । इस प्रकार विचार कर राजा और मंत्री चुपचाप चल दिये । नगरके भीतर दोनोंने एक अचम्भा देखा । वे देखतें हैं कि एक आदमीकी केवल परछाई तो दिखलाई देती है मगर आदमी नहीं।
राजाने मंत्रीसे पूछा-यह कौन है ? मंत्री बोला-इसका नाम सुवर्णखुर है । यह अंजनवटी विद्यामें बड़ा प्रसिद्ध है।
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