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उदितोदय राजाकी कथा ।
लगे-कि विनाशके समय बुद्धि भी नष्ट हो जाती है यह कहावत सच है।
रामचन्द्रने सोनेके मृगकी मायाको न जाना । नहुष राजा ब्राह्मणों को गाड़ीमें जोतता था । अर्जुनके पुत्रकी मति ब्राह्मणकी गाय और बछड़ोंको चुरानेमें प्रवृत्त हो गई । युधिष्ठिर अपने चारों भाई और द्रौपदीको जुएमें हार गये। कहनेका मतलब यह कि विनाशका समय आजाने पर समझदारोंकी भी बुद्धि बिगड़ जाती है-अक्ल गुम हो जाती है। देखो न, रावणके दिमागमें एक सौ आठ विद्याएँ समाई हुई थी, पर जब लंका नष्ट होने लगी-जब रामचन्द्र उसका नाश करने पर उतारू हुए तब बेचारे रावणकी एक भी विद्या काम न आई । इत्यादि कहकर लोग चुप रहे । सुयोधन विचारने लगा कि मैंने तो विचारा था कि इस उपायसे यमदंडको मार कर मैं सुखसे राज्य करूँगा, पर यह आफ़त मेरे ही सिर पड़ी। कमौकी बड़ी ही विचित्र गति है।
पाठकगण, अब प्रकृत विषय पर आजाइए। सुबुद्धि मंत्रीने सुयोधन राजाकी कथा समाप्त की। अब फिर वही प्रकरण चलता है।
सुयोधन राजाकी कथा कह कर सुबुद्धि मंत्री उदितोदय महाराजसे कहने लगा-महाराज, इस कथासे आपने जान लिया होगा कि किसीके साथ विरोध न करना चाहिएकिसीका तिरस्कार न करना चाहिए । ऐसा करनेसे अप
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