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सुयोधन राजाकी कथा ।
साठ साठ सालके हाथी गायब हो गये-उड़कर लापता हो गये, उसमें मच्छरोंकी बातको तो जाने दीजिए बेचारी गौओंकी भी कोई गिनती नहीं। ऐसा विचार कर सुभद्र अपनी दोनों स्त्रियोंको शिक्षा देने लगा-मैं जाते समय तुम दोनोंको अपनी माकी रखवालीमें छोड़ गया था। रातको मैंने लौटकर देखा तो मेरी मा एक यारको लेकर फुलवारीमें पड़ी है और अरंडके पेड़ पर उसके कपड़े रक्खे थे। मैंने सब भेद जान लिया । मेरा सब घर चौपट हो गया । यमदंडने यहीं पर कथा समाप्त की। राजाने इस कथाका भी कुछ मतलब न समझा । यमदंड अपने घर चला गया । इस तरह सातवाँ दिन भी बीत गया। __ आठवें दिन यमदंडको सभामें आया देखकर राजाके क्रोधका कुछ ठिकाना न रहा । उसने क्रोधसे लाल होकर पूछा-क्यों यमदंड, चोर मिला या नहीं ? यमदंड बोलामहाराज, चोरका कहीं पता न चला । यह सुनकर राजाने शहरके सब महाजनोंको बुलाकर कहा-देखिए, अब मेरा कोई दोष नहीं है । यह पाजी मुझे सात दिनसे धोखा दे रहा है । अभीतक न चोर लाया, न चोरीका माल । अब मैं इसके सौ टुकड़े कर उनसे दिशाओंकी बलि दूंगा। इस बातके सुनते ही यमदंड घर गया और जनेऊ, अँगूठी, तथा खडाऊँ लाकर उसने उन तीनों चीजोंको राजसभामें रख दिया और कहा-महाजनो, आप न्यायकर्ता हैं, (उन तीनों चीजोंको
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