________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्हद्दास सेठकी कथा । कोई चिन्ता हो, तो वह बतलाइए । राजाने कहा-तुम्हारे रहते हुए भी मुझे कोई चिंता हो सकती है क्या ? पर आश्चर्य इस बातका है कि मैं दुगुना, तिगुना, चौगुना, और पँचगुना तक भोजन कर जाता हूँ, पर तृप्त नहीं होता । मुझे तो ऐसा मालूम पड़ता है कि जैसे मेरे साथ कोई भोजन करता हो । इसी कारणसे मेरे उदरकी अग्नि शांत नहीं होती।
इस बातको सुनकर मंत्रीने मनमें विचारा कि कोई अंजन लगाकर अदृश्य हो राजाके साथ भोजन करता है। इसीलिए ये दुवले होते जाते हैं । मंत्रीने एक दिन इसका पता लगानेको एक प्रयत्न किया। राजाके भोजनके कुछ समय पहले उसने रसोईघरके आस पास खूब आकके सूखे फूल बिछवा दिये, चारों कोनोंमें तीव्र धृपके धुएँसे भरे हुए घड़ोंको मुँह बाँधकर रखवा दिया, चारों तरफ हथियार लिए सामन्तोंको खड़ा कर दिया और एक जगह बड़े बड़े मल्लोंको छुपा दिया । इस प्रकार सब ठीक प्रबंध करके ये थोड़ी देर तक ठहरे होंगे कि अंजनचोर आ पहुँचा । जब वह रसोई घरमें जाने लगा तो आकके फूलों पर उसके पाँव पड़नसे फूल चुरमुराने लगे । उससे सब लोगोंने जान लिया कि चोर आ गया । उन्होंने उसी समय सब किंवाडौंको बन्द करके मजबूत अर्गला ( भागल ) लगादी । उन धुएँके घडॉका मुँह खोल दिया गया। चोरकी आखोंमें धुंआ लगा, आँखे तिल मिलाने लगी, आखोंका अंजन
For Private And Personal Use Only