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सम्यक्त्व-कौमुदी
निकल गया और चोर स्पष्ट दिखाई देने लगा। तब मल्लोंने उसे पकड़ लिया। उसे वे राजाके पास ले गये । ऐसी दशा देख चोर मनमें विचारने लगा-राजाके साथ भोजन करना गया सो तो गया ही, परदैवीघटनासे अब तो मेरा घर द्वार भी जाता दिखाई देता है । मैं दोनों तरफसे गया। ठीक मेरी वही दशा हुई जैसी कि उस हाथी की, जो गरमीमें प्यासके मारे तालावमें पानी पीने गया था और दैवयोगसे किनारे पर कीचडमें फँस गया था।
मैंने कुछ तो विचारा था, पर दैवयोगसे कुछ और ही हो गया। सच है मनचाहा कभी नहीं होता । एक समय एक राजकुमारी एक भिक्षु पर प्रसन्न हो गई थी, पर दैवयोगसे उस भिक्षुकको ही व्याघ्रने खा लिया। इसी तरह एक भौंरा कमलिनीके भीतर बैठा बैठा रातमें विचार बाँध रहा था-रात बीतते ही सबेरा होगा, सूर्यका उदय होगा, कमल खिलेंगे और मैं रस पान करूँगा कि इतनेहीमें एक हाथीने आकर उस कमलिनीको उखाड़ कर खा लिया । भौरेके विचार ज्योंके त्यों रह गये। चोर इसी उधेडं बुनमें लगा था कि राजाने सुभटोंको आज्ञा देदी कि इसको मूली पर चढ़ादो। यह सुनकर किसीने कहा-देखो, एक व्यसनका सेवन करनेवाला भी जब नियमसे मारा जाता है, तब सातों व्यसनोंको सेवन करनेवालेका तो कहना ही क्या है । यही कारण था जो जूआ खेलनेसे पांडवोंका,
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