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सम्यक्त्व - कौमुदी -
ना ही विनाश हो जाता है । इसके सिवा और कुछ नहीं होता | नीतिकारोंका भी कहना है-छोटेसे छोटेका भी तिरस्कार करना ठीक नहीं। क्योंकि छोटा भी मौका पाकर बड़ा काम कर डालता है। टीड़ियोंके झुंडने एक वार समुद्रको भी व्याकुळ कर दिया था । उदितोदय राजा मंत्रीकी इस उपदेश पूर्ण कहानीको सुनकर बोला- तुमने जो कुछ भी कहा वह बिलकुल ठीक है । यदि मैं उपवनमें चला जाता तो जरूर ही विरोध खड़ा हो जाता और मेरी भी वही दशा होती जो सुयोधन राजाकी हुई थी । इसमें जरा भी संदेह नहीं। इस बातको कौन जान सकता कि बीचमें किस कर्मका उदय आ जाय ? देखिए, गर्मी के दिनोंमें मारे गर्मी के खूब प्यासा कोई हाथी भरे तालाबको देख कर दौड़ा दौड़ा पानी पीने गया, पर इस जल्दीके मारे वह किनारे पर कीचड़ में फँस गया । भाग्यसे न तो वह पानी पी सका और न कीचड़से निकल कर बाहर ही आ सका - दोनों तरफसे हाथ धो बैठा। मतलब यह कि होनहारको कोई देख नहीं आया । राजा मंत्री से बोला- अब मुझे इस बातका निश्चय हो गया कि योग्य मंत्रीके बिना राज्यका नाश हो जाता है । नीतिकारोंने यह झूठ नहीं कहा है, कि विषसे एक ही आदमी मरता है, हथियार भी एक वारमें एक ही आदमीको मार सकता है, पर जहाँ अयोग्य मंत्री हुआ और उसने उलटी सम्मति दी, कि राज्यका राजाका और राजाके परिवारका समूल नाश
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