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सम्यक्त्व-कौमुदी
कपड़ा रंडके पेड़ पर टँगा देखा । वह मनमें विचारने लगाआश्चर्य है यह सत्तर वर्षकी बुड्डी हुई तब भी कामसेवन करती है, उसे छोड़ती नहीं है । बड़ी ही विचित्र बात है-गज़ब तमाशा है । यह सब लीला कामदेव महाराजकी है जो मरेको भी मार रहा है । नीतिकारने बहुत ही ठीक कहा है-जो दुबला-पतला है, काना और गंजा है, जिसके कान पूंछ नहीं हैं, फोडोंमेंसे पीव निकल रही है, देहमें सैकड़ों कीड़े बिलबिला रहे हैं, भूखके मारे तड़फ रहा है और गलेमें फूटे घड़ेका गला पड़ा है, ऐसा होकर भी कुत्ता कुत्तीके पीछे लगा फिरता है । इसीलिए कहना पड़ता है कि कामदेव मरेको भी मारता है । सुभद्र और भी विचारने लगा-स्त्रियोंके चरित्रको, उनकी करतूतोंको कोई नहीं जान सकता । लोगोंका यह कहना झूठ नहीं है कि स्त्रियाँ किसीसे लिपटती हैं, तो किसीको मीठी बातोंसे खुश रखती हैं; किसीको देखती हैं, तो किसीके सामने किसी दूसरे यारके लिए रोने लगती हैं; एकको शपथ खाकर प्रसन्न करती हैं, तो दूसरे पर गाढ़ा प्रेम दिखलाती हैं; किसीके साथ सो रही हैं, तो पड़ी पड़ी ध्यान किसी दूसरेका ही लगा रही हैं। स्त्रियाँ ऐसी कुटिल होती हैं, यह बात सब जानते हैं तो भी लोग उन्हें बहुत मानते हैं। नहीं मालूम किस धृर्तने इनकी रचना की ? किस पाजीने इन्हें बनाया? जब बुढ़ापेमें मेरी माका यह हाल है तो न जाने उन दोनों जवान औरतोंकी क्या दशा होगी ? जिस तूफानमें, जिस वायुके वेगमें
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