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सम्यक्त्व-कौमुदी
नहीं सुहाते, जोरावरकी डरपोंक निन्दा करता है, और रसोइया रसोइयाको, वैद्य वैद्यको, ब्राह्मण ब्राह्मणको, नट नटको, राजा राजाको और कवि कविको देखकर कुत्तेकी तरह घुरघुराने लगते हैं। __इस तर्क वितर्कके बाद भारतीभूषणने उसी बालमें बैठे बैठे,
जो चारों तरफ पानीसे घिरी थी, एक पथ पढ़ाजिसका मतलब यह है कि “मैं उस पानीके बीचमें मरूँगा, जिससे सब तरहके बीज पैदा होते हैं, जिससे वृक्ष बड़े होते हैं। मुझे यह आश्रयसे भय प्राप्त हुआ।" इसके बाद भारतीभूषणकी दृष्टि नीचेको बहते हुए पानी पर पड़ी। उसे देखकर उसने एक अन्योक्ति कही । उसका मतलब यह है-हे जल, तुममें शीतल गुण है, तुम स्वभावसे ही निर्मल हो, तुम्हारी पवित्रताके विषयमें हम क्या कहें जब कि तुम्हारे सम्पकैसे दूसरे भी पवित्र हो जाते हैं, तुम प्राणियोंके प्राण हो, इससे बढ़कर तुम्हारी और क्या स्तुति हो सकती है । फिर यदि तुम भी नीच मार्गका अवलम्बन करो, तो तुम्हें रोकने. वाला ही कौन है ?
भारतीभूषणकी यह सब बातें वसुंधर राजा भी छुपा हुआ सुन रहा था । उसने मनमें विचारा-इसे गंगामें फिंकवा दिया, यह मैंने अच्छा नहीं किया । सजनको अपने आश्रित जनोंके गुण दोषों पर विचार नहीं करना चाहिए। नीतिकारने भी कहा है कि देखो, चन्द्रमा क्षयी है
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