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सम्यक्त्व-कौमुदी
उनसे पूछा-ये मृगके बच्चे कहाँ पर मिलते हैं ? उनमेंसे किसी शिकारीने कहा-महाराज,पुराने वनमें मिलते हैं। तब राजा स्वयं शिकारीका भेष बनाकर उस वनमें गया। वह वन बड़ा ही बेढब था । मृग पकड़ना वहाँ कठिन था । राजाने तब उस वनमें एक ओर शिकारियोंसे आग लगवादी, एक ओर जाल बिछवा दिये, और एक ओर गहरे गढ़े खुदवा दिये।
यह सब देखकर एक पंडितने कहा कि जहाँ चारों दिशाओंमें रस्सी बँधी हैं, पानीमें विष मिला है, जाल फैल रहे हैं, चारों तरफ आग लगी है और शिकारी धनुष लेकर मृगोंके पीछे दौड़ रहा है, ऐसी दशामें उस वनमेंसे गर्भिणी हरिणी कहाँ और कैसे भाग सकती है ? यमदंडने इस कथाको कहा, पर राजाकी समझमें इसका मतलब न आया । यमदंड कहानी समाप्त कर अपने घर चला गया ।
पाँचवें दिन यमदंड फिर राजसभामें आया । राजाने फिर वही चोरके मिलनेकी बात पूछी और यमदंडने भी रोजकी तरह अपना बना बनाया उत्तर दे दिया । राजाने उससे जब देरीका सबब पूछा तो उसने वही कहानीकी बात कही। राजाने कहानी कहनेकी उसे आज्ञा दी और वह इस तरह कहने लगा
नेपाल देशमें पाटली एक नगरी है । उसमें वसुंधर नामका राजा था। उसकी रानीका:नाम वसुमती:था । राजा कविता करनेमें बड़ा निपुण था । इस राजाके मंत्रीका नाम भारती
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