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सुयोधन राजाकी कथा ।
हर रोज घटता बढ़ता है, स्वभाव हीसे टेढ़ा-तिरछा है, जड़ है, कलंकी है और मित्र पर विपत्ति आने पर प्रसन्न होता है। अर्थात् सूर्यके डूबने पर उदय होता है। इतने दोष रहने पर भी महादेवजीने उसे अपने सिर पर बैठा रक्खा है । सच है महापुरुष अपने सहारेसे जीनेवालोंके गुण दोषो पर विचार नहीं करते । इत्यादि विचार कर राजाने भारतीभूषणको गंगामेंसे निकलवा कर उसका सम्मान किया
और फिर उसे मन्त्री बना लिया। __ राजाने कथा सुनी, पर इसका मतलब वह न समझ सका। यमदंड कथाको समाप्त कर घर चला गया । इस तरह पाँचवाँ दिन बीता। __ छठे दिन यमदंड फिर राजाके पास आया । राजाने उससे पूछा-चोर मिला ? यमदंडने उत्तर दिया महाराज, नहीं मिला । राजाने देरीका कारण पूछा । वह कहने लगाबाजारमें एक आदमीसे कथा सुनने लग गया था, इससे देर हो गई । राजाने कहा वह कथा कैसी थी? यमदंड इस प्रकार कहने लगा
कुरुजांगल देशमें पाटलीपुर नामका नगर था। उसमें सुभद्र नामका राजा था। इसकी रानीका नाम सुभद्रा था । एक समय सुभद्राने मनोविनोदके लिए एक बगीचा बनवाया, उसमें नाना जातिके वृक्ष लगवाये और उसके बीचमें एक नहर निकलवाई । नहरका पानी बड़ा ही निर्मल था। उसमें हंस,
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