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सम्यक्त्व कौमुदी
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करना ही चाहिए-उसे दंड जरूर देना चाहिए। नीतिकारोंने भी तो कहा है-जो शास्त्रके अनुसार युद्ध में शत्रु है, तथा जो देशमें कंटक समान है, राजा लोग उन ही पर शस्त्र प्रहार करते हैं, पर जो बेचारे दीन हैं, अनाथ बालक हैं,
और जो महापुरुष हैं, उन पर वे कभी हथियार नहीं उठाते । तथा दुष्टोंको दंड देना, सज्जनोंका पालन करना यह राजाओंका धर्म है-परम कर्तव्य है । मूड मुड़ाकर जटा धारण करना राजाओंका काम नहीं । ऐसा विचार कर अपने शत्रु महाबलके ऊपर उसने चढाई करदी। युद्ध हुआ । सुधर्म राजाने महाबलको जीत लिया और उसका सर्वस्व हरण कर राजपाट भी छीन लिया । बाद बड़े आनन्दसे वह अपनी राजधानीमें लौट आया । जब सुधर्म नगरमें प्रवेश करने लगा तब नगरका दरवाजा टूट कर गिर पड़ा । उसे देखकर राजाने समझा यह अपशकुन हुआ । तब नगरमें प्रवेश न कर वह नगरके बाहर ही ठहर गया । राजाने मंत्रीसे कह कर उस दरवाजेको फिरसे बनवाया। दूसरे दिन जब फिर राजा प्रवेश करने लगा तब भी वही दशा हुई । इसी तरह तीसरे दिन भी यही घटना घटी । तब राजाने मंत्रीसे पूछा कि यह दरवाजा कैसे स्थिर रहेगा ? मंत्री बोला-महाराज, " यदि आप अपने हाथसे मनुष्यको मारकर उसके लोहूसे इसको सींचें तो यह स्थिर हो सकेगा-फिर नहीं गिरेगा" ऐसा अपने कुल
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