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सुयोधन राजाकी कथा ।
लोग कहने लगे कि यदि माता अपने लड़केको विष दे, पिता उसे बेचे, तथा राजा सब धन-दौलत छीन लेनेको तैयार हो तो फिर दुःख किसे जाकर कहा जाय ? वरदत्तकी बात सुनकर महाजन लागे कहने लगे-देखो वरदत्त, यदि बालककी माता उसे विष पिलावे और तुम उसकी गर्दन मरोड़ो तो यह रुपया
और सुवर्णपुरुष तुम्हें मिलेगा, नहीं तो न मिलेगा। बरदत्त बोला-हाँ मैं और मेरी स्त्री ऐसा करनेको राजी हैं। यह सुनकर बेचारा बालक इन्द्रदत्त मनमें सोचने लगा-आश्चर्य है कि इस स्वार्थमय संसारमें कोई किसीका प्यारा नहीं । बहुत ही ठीक कहा है-जब पेड़में फल नहीं रहते तब पक्षी भी उस पर नहीं आते, सूखे तालावके पास हंस नहीं जाते, विना गंधके फूलको भौरे और जले हुए वनको मृग छोड़ देते हैं, निर्धन मनुष्यको वेश्याएँ भगा देती हैं तथा धनहीनका नौकर लोग साथ नहीं देते । सारांश यह कि अपने अपने मतलबसे सब कोई एक दूसरेसे प्रेम करता है, पर असलमें कोई किसीका प्यारा नहीं । वस्तुका चमत्कार तो देखिए कि धनके लिए ऐसे अकर्तव्य भी किये जा सकते हैं ! ऐसा अन्याय, ऐसा भयंकर पाप भी किया जा सकता है ! अथवा भूखा आदमी कौन पाप नहीं करता ? नीच मनुष्य निर्दय हुआ ही करते हैं । अन्तमें वरदत्तने वह रुपया और सुवर्णपुरुष ले लिया और अपने इन्द्रदत्त नामके छोटे लड़केको महाजनोंके हाथ सौंप दिया । जब उस गहने पहरे हुए,
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