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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयोधन राजाकी कथा । की, पर राजाने उस कहानीका सच्चा मतलब न समझा। यमदड घर चला गया। इस तरह उसका दूसरा दिन बीता। . जब तीसरे दिन यमदंड आया तो राजाने फिर उससे पूछा कि यमदंड, चोरका पता पाया क्या? वह बोलामहाराज, नहीं । तब राजा बोला-फिर इतनी देर कहाँ लगी? वह बोला-महाराज रास्ते एक आदमी एक कहानी कह रहा था, मैं उसे सुनने लग गया, इससे देर हो गई । राजा बोला-वह कहानी मुझे भी तो सुना । यमदंड बोलामहाराज, सुनिए-पांचाल देशमें बरशक्ति नामका एक नगर है। उसमें सुधर्म नामका एक राजा था। वह बड़ा ही धर्मात्मा और जिनमतके अनुसार चलनेवाला था । उसकी रानी जिनमति भी उसीकी तरह धर्मात्मा थी। राजमंत्रीका नाम जयदेव था। मंत्रीकी स्त्रीका नाम विजया था। ये दोनों श्रावकके व्रतोंको पालते थे । इस प्रकार राजा सुखसे राज्य करता था । एक दिन सभामें बैठे हुए राजाके पास आकर एक गुप्तचरने कहा-महाराज, आपका शत्रु महाबल प्रजाको बड़ा ही कष्ट देता है । राजा कहने लगा-जबतक मैं नहीं पहुँचता तबतक वह ऐसे उपद्रव भले ही मचाले । पीछे मैं उसे देख लूँगा । राजाने और भी कहा-मैं बिना कारण किसी पर हथियार नहीं बाँधता । लेकिन हाँ जो युद्धमें सामने आता है, जो देशका कंटक है, जो देशद्रोही है, उसका निराकरण तो राजाको अवश्य For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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