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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० सम्यक्त्व-कौमुदी नहीं मिला । तब राजाने कहा-इतना समय कहाँ लगा? यमदंड बोला-रास्तेमें एक कुम्हार एक कहानी कह रहा था, मैं उसे सुनने लग गया, इसीसे देर हो गई । राजा बोला-वह कहानी कैसी है ? यमदंड बोला-सुनिए, इसी नगरमें एक कुम्हार रहता था । उसका नाम पाहण था । वर्तन बनानेमें वह बड़ा ही निपुण था । वह जन्मसे ही शहरके पासवाली खानसे मिट्टी लाकर नाना भाँतिके बर्तन बना बना कर बेचा करता था। इसीमें वह धनी हो गया। पीछे उसने एक बहुत सुन्दर मकान बनवाया, बाल-बच्चोंका उसने विवाह किया। साधु वैरागीको वह उत्तम दान देने लगा, भिखारियोंको भीख देने लगा। इसी तरह उस कुम्हारने बड़ा नाम कमा लिया । अपनी जातिमें वह सबसे बड़ा गिना जाने लगा । एक दिन पाल्हण अपनी गधीको लेकर मिट्टी लानेको खान पर गया। खानमेसे वह मिट्टी खोदने लगा । इतनेमें खानका एक किनारा उसकी कमर पर आ गिरा। उसकी कमर टूट गई । तब वह कहने लगा कि मैं जो साधु वैरागियोंकी सेवा-शुश्रूषा करता हूँ, भिखारियोंको भीख देता हूँ और भी जो दान-पुण्य करता हूँ, यह उसीका फल है जो आज मेरी कमर टूट गई । तब यह कहना चाहिए कि मुझे आश्रयहीसे भय प्राप्त हुआ। यमदंडने अपनी कथा समाप्त For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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