________________
( १० )
महोपाध्याय समयसुन्दर
और पं० गुणविनय प्रभृति ३१ साधुओं के परिवार सहित लाहोर में सम्राट् से मिले और स्वकीय उपदेशों से प्रभावित कर आपने तीर्थों की रक्षा एव अहिंसा प्रचार * के लिये आषाढी अष्टाह्निका एवं स्तम्भतीर्थीय जलचर रक्षक आदि कई फरमान प्राप्त किये थे।
और सं० १६४६ फाल्गुन वदि १० के दिवस सम्राट के हाथ से ही युगप्रधान पद प्राप्त किया था जिसका विशाल महोत्सव एक करोड़ रुपये व्यय कर महामन्त्री कर्मचन्द्रो वच्छावत ने किया था। एक समय जब कि सम्राट जहांगीर अपने अन्तःपुर में सिद्धिचन्द्र नामक व्यक्ति को दुष्कृत्य करते हुए देखता है तो अत्यन्त ही कुपित होकर समग्र जैन साधुओं को कैद करने का और अपनी सीमा से बाहर करने का हुक्म निकाल देता है । उस समय जैन-शासन की रक्षा के निमित्त आचार्यश्री वृद्धावस्था में भी आगरा जाते हैं और * युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि परिशिष्ट ग.
विद्यामन्त्रविशेषैश्चमत्कृतः श्रीजलालुद्दीनोऽपि । श्रीस्तम्भतीर्थजलनिधिजलजन्तुदयापरो वर्षम् । ८ । आषाढ-विमलपक्षे, दिनाष्टकं सर्वादेशसूबेषु । अनुकम्मायाः पटहः साहेवचनेन दत्तो यैः।।।
[उत्तराध्ययन वृत्ति प्रशस्तिः, हर्षनंदन कृता] पा तेजः श्रीमदकब्बराभिधनृपः श्रीपातिसाहिमुदावादीद्यत्सु युगप्रधान इति सन्नाम्ना यथार्थेन व ॥ ४॥ श्रीमन्त्रीश्वरकर्मचन्द्रविहितोद्यकोटिटङ्कव्ययं, श्रीनन्धु त्सवपूर्वकं युगवरा यस्मै ददौ स्वं पदम् । श्रीमल्लाभपुरे दयादृढमति-श्रीपातिसाह्याग्रहाअन्धाच्छोजिनचन्द्रसूरिसुगुरुः सस्फीततेजोयशाः ।। ५॥
[श्रीवल्लभोपाध्याय कृत अभिधानचिन्तामणिनाममाला टीका.] । कर्मचन्द्रवंश प्रबन्ध वृत्ति सह.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org