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महोपाध्याय समयसुन्दर
सूत्रपात किया उस समय आचार्यश्री ने उसको शास्त्रार्थ के लिये आह्वान किया और उसके उपस्थित न होने पर तत्कालीन अन्य समग्र गच्छों के आचार्यों के समक्ष धर्मसागर जी को उत्सुत्र
जो समाधान न थाय तो आखा जैन-समाज मां दावानल अग्नि प्रकटे । आ माटे जोखमदार आचार्यों ने वच्चे पड्या वगर रही शकाय नहीं तेथी तपागच्छाचार्य विजयदानसूरि उपरोक्त ग्रन्थ पाणी मां बोलावी दीधो अने तेने अप्रमाण-ठेरव्यो । तेमणे जाहिरनामु काढी 'सात बोल' नी आज्ञा काढी एक बीजा मतवालाने वाद-विवाद नी अथडामण करता अटकाव्या हता। पण आटलाथी विरोध जोइए तेवो न शम्यो त्यारे विजयदानसूरि पछी आचार्य हीरविजयसुरि ए उक्त सात बोल पर विवरण करी 'बार बोल'ए नामनी बार आज्ञाओ जाहिर करी हती सं०१६४६ । अाथी जैन समाजमा घणी शान्ति प्रावी।" [ पृ०३]
xxxx ___ "११. विक्रमनी सत्तरमी शताब्दि मां (सं० १६१७) अभयदेवसूरि खरतर हता के नहिं ते संबंधी पाटणमांज तपागच्छना धर्मसागर उपाध्याय अने खरतरगच्छना धनराज उपाध्यायने जबरो झगड़ो थयो हतो। धर्मसागरे एवु प्रतिपादन करवा मांड्य हतुके खरतरगच्छनी उत्पत्ति जिनेश्वरसूरि थी नहिं, पण जिनदत्तसूरि थी थई छ; अभयदेवसूरि खरतरगच्छमां थइ शकता नथी; जिनवल्लभसूरिश्रे शास्त्र विरुद्ध प्ररूपणा करी छेवगेरे चर्चाना विषयो पोताना औष्ट्रिक मतोत्सूत्र दीपिका नामना ग्रन्थमा भूक्या (रच्या सं०१६१७)। आ अन्थनु बीजु नाम प्रवचन परीक्षा छे या बन्ने जूदा होय-बन्नेमां विषयो सरखा छ । तेमांना एकनु बीजुनाम कुमतिकंदकुदाल छे । आथी बहु होहाकार थयो । बे गच्छ बच्चे अथडामणी अने अन्ते प्रबल विखवाद उत्पन्न थतां ते क्यां अटकशे, ए विचारवानु रह्यु।
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