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महोपाध्याय समयसुन्दर (७ ) युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के माता-पिता वीसा ओसवाल ज्ञातीय श्रीवंत और सियादे खेतसर (मारवाड़ ) के निवासी थे। आपका जन्म सं० १५६५ में हुआ था और आपका बाल्यावस्था का नाम सुलतान था। आचार्य प्रवर श्रीजिनमाणिस्यसूरिजी के उपदेश से प्रभावित होकर ६ वर्ष की अवस्था में आपने सं० १६०४ में दीक्षा ग्रहण की थी। आपका दीक्षा नाम रखा गया थासुमतिधीर । आचार्य जिनमाणिक्यसूरि का देरावर से जेसलमेर आते हुए मार्ग में ही स्वर्गवास हो गया था। अतः सम्वत् १६१२ भाद्रपद शुक्ला ६ गुरुवार को जेसलमेर में बेगड़गच्छ (खरतरगच्छ की ही एक शाखा) के आचार्य श्री गुणप्रभसूरि ने आपको आचार्य पद प्रदान कर, जिनचन्द्रसूरि नाम प्रख्यात कर श्री जिनमाणिक्यसूरि का पट्टधर (गच्छनायक ) घोषित किया । इस पट्टाभिषेक का महोत्सव जेसलमेर के राउल श्री मालदेवजी ने किया था। जेसलमेर से विहार कर, बीकानेर के मन्त्रिवयं संग्रामसिंह जी के आग्रह से आप बीकानेर पधारे। वहां सं० १६१४ चैत्र कृष्णा सप्तमी को स्वगच्छ में प्रचलित शिथिलाचार को दूर करने के लिये आपने क्रियोद्धार किया । सं० १६१७ में पाटण में जिस समय तपगच्छीय प्रखर विद्वान् किन्तु कदाग्रही उपाध्याय धर्मसागरजी* ने गच्छविद्वेषों का * सागर जी के गच्छ विद्वेष प्रकरण पर लिखते हुए कविवर समयसुन्दर निबन्ध में श्री मो० दु० देशाई लिखते हैं:
"श्वेताम्बर मतना खरतरगच्छ अने तपगच्छ वच्चेनी मतामती पण प्रबल थई पड़ी हती अने तेमां धर्मसागर उपाध्यायजी नामना तपगच्छीय विद्वान्-पण उग्र स्वभावी साधु कुमतिकंदकुद्दाल (याने प्रवचन परीक्षा) नामनो ग्रन्थ बनावी तपगच्छ सिवाय ना अन्य सर्व गच्छ अने मत सामे अनेक आक्षेपो मूक्या । आथी ते सर्व मतो खलबली उठ्या; अने तेनु
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