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वखस्कंध
( ६७६ )
वति
व्रखस्कध-पु० [सं० वृषस्कंध] शिव, महादेव ।
१ अस्त्र-शस्त्र । २ देखो 'बजरंग' । ३ देखो 'बजराक' । वखांक-पु० [सं० वृषांक] शिव, महादेव ।
|जिन-पु० [सं० वजिनं] १ कुकर्म, पाप। २ कष्ट, पीडा, बखांणगुण-पु० [सं० वृषारण गुण] भोजन । वखा-पु० [सं० वृषा] १ इन्द्र का एक नाम । २ देखो 'वरसा। व्रजेंद्र, व्रजेस्वर-पु० [सं० ब्रज-इन्द्र] श्रीकृष्ण । व्रखाकपाई (पायी)-स्त्री० [सं० वृषाकपागे] १ लक्ष्मी । व्रज्ज-देखो 'व्रज'।-वासो-'व्रजवासी' ।
२ गोरी। ३ इन्द्र पत्नी शची। ४ अग्नि-पत्नी स्वाहा । व्रज्या-स्त्री० [सं०] रीति, वेदोक्त विधान । ५ सूर्य की पत्नी।
वरण-पु० १ घाव, जरूम ।२ फोड़ा, फुसी।३ चेचक का दाग । वखाकपि, प्रखाकपी, खाक्रति, वखाक्रती-पु० [सं० वृषाकपिः]
४ देखो 'वरण' । ५ देखो 'वरणन'।-सोष, सोस-स्त्री. १ सूरज, सूर्य । २ शिव, महादेव । ३ एक रुद्र का नाम ।
फोड़े के कारण होने वाली सूजन। . ४ इन्द्र । ५ विष्णु। ६ अग्नि, प्राग। ७ श्रीकृष्ण । वतंत (ति, ती, तु, तू)-देखो 'व्रतात' । ८ ईश्वर, परमात्मा।
व्रत-पु० [सं०] १ संकल्प, प्रतिज्ञा। २ नियम । ३ उपवास, खासण (न)-स्त्री० [सं० वृषासन] शिव, महादेव ।
लंघन । ४ धर्म, कर्तव्य । ५ माराधना, भक्ति। ६ अनुष्ठान वखासुर-पु० [सं० वृषासुर भस्मासुर दैत्य ।
की विधि । ७ यज्ञ, हवन, होम। ८ देश, राष्ट्र । ९ कूए अखि, अखी-पु० [सं० वृषिन्] १ इन्द्र, देवराज। २ मंगल ग्रह ।
से मोट खींचने का मोटा रस्सा। १० देखो 'वत्त'। ३ वृक्ष, पेड़ । ४ वृषभ राशि।
११ देखो 'व्रतांत'। वस्ख-१ देखो 'वक' । २ देखो 'वक्ष' । ३ देखो 'खभ'। व्रतधरण-पु० [सं० वृत्रधन | इन्द्र का एक नाम । बगुट (टि, टी, दृट्टी)-देखो 'भ्रकुट' ।
व्रतणी (बी)-देखो 'वरतणो' (बी)। बच्छ, अछ-देखो 'वक्ष'।
व्रतधार (धारी)-वि० [सं० व्रतधारिन्] व्रत रखने वाला, बछिक-देखो 'ब्रस्चिक'।
संकल्प करने वाला। वज (देस)-पु० [स०] १ मथुरा एवं वृन्दावन के चारों भोर व्रतभग, व्रतभंगी-पु० [सं० व्रतभंग] १ व्रत भंग होने या
का क्षेत्र । २ समूह, झुण्ड । ३ व्रज भाषा। ४ देखो 'वज्र'। संकल्प टूटने की दशा या भाव। २ व्रत भंग करने वाला -पत, पति, पती (त्ति, ती)-पु० श्रीकृष्ण ।-वासी-पु. व्यक्ति । ३ काव्य रचना का एक दोष । इस प्रदेश का निवासी।
व्रतमारण (न)-देखो 'वरतमाण'। व्रजच-पु० [सं० व्रजचन्द्र] १ श्रीकृष्ण । २ ईश्वर । व्रतवैरी-पु० [सं० वृत्र-वरी] इन्द्र, सुरपति । वजणौ (बी)-क्रि० १ जाना, गमन करना। २ रोकना, मना व्रतहा-देखो 'वत्रहा'। करना । ३ टालना।
व्रतांत, व्रताति-पु० [सं० वृत्तान्त] १ किसी घटना का विवरण, प्रजदेव, व्रजनंद-पु. श्रीकृष्ण ।
ब्योरा । २ समाचार, खबर । ३ विषय, प्रसंग । ४ दशा, ब्रजनाइक, व्रजनाथ, वजनायक-पु. १ श्रीकृष्ण। २ भगवान हालत । विष्णु ।
तासुर-देखो 'वत्रासुर'। व्रजमाखा (भासा)-स्त्री० [सं० व्रजभाषा] व्रज प्रदेश की बोली। व्रति-स्त्री० [सं० वृत्ति] १ चक्कर, घुमाव । २ परिधि, व्याम । ब्रजभूखण (भूसरण)-पु० [सं० व्रजभूषण] श्रीकृष्ण. ईश्वर ।।
३ वृत्त. चक्र का घेरा । ४ चित्त की दशाएं, क्रियायें । व्रजभूप-पु० [सं०] श्रीकृष्ण ।
५ इच्छा, चाह, अभिलाषा । ६ क्रिया, कर्म व्यापार, कर्म वनमंडळ-पु० [सं० व्रजमंडल] व्रज के पास-पास का प्रदेश ।
विधान । ७ प्रकृति, स्वभाव, मादत । ८ वर्तमान होने व्रजमोहन-पु. [सं०] श्रीकृष्ण ।
वाला अस्तित्व । ९ दशा परिस्थिति । १. याचना, भिक्षा वजयंद-पु० [सं० व्रजेंद्र] श्रीकृष्ण ।
वृत्ति । ११ गति । १२ तौर, तरीका, ढंग । १३ प्राचरण, व्रजराज (राय, राव)-पु० [सं० ब्रजराज] १ श्रीकृष्ण ।
चरित्र । १४ धधा, पेशा । १५ जीविका, रोजी । २ वसुदेव ।
१६ सेवा कार्य । १७ मजदूरी, पारिश्रमिक । १८ नीयत । व्रजरेग-स्त्री० [सं०] व्रज भूमि की घूलि ।
१९ मेहत्तर, नाई प्रादि का कुछ निश्चित लोगों के घरों पर व्रजविलास-पु० [सं०] श्रीकृष्ण का एक नाम ।
किया जाने वाला कार्य । २० उक्त कार्य के उपलक्ष में व्रजांगना-स्त्री. व्रज की स्त्री, गोपिका।
सहायतार्थ दिया जाने वाला धन । २१ व्याख्या । २२ शब्द बजाक, वजाग, वजागनि (नी), वजागि, वजागी, ब्रजाग्नि-स्त्री० । शक्ति । २३ छात्रवृत्ति प्रादि ।-वि० गोलाकार, गोल ।
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