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स्वामीकारतिक
। ८७३ )
स्वीकारणो
स्वामीकारतिक, स्वामीकारतिकैय-पु० [सं० स्वामिकात्तिकेय] | स्वाधिस्ठाण-पु० [सं० स्व + अधिष्ठान कुंडली के ऊपर
शिव व पार्वती का बड़ा पुत्र जो देव सेना का सेनापति था | पड़ने वाला एक चक्र। .. पौर तारकासुर का वध करने के लिये अवतरित हुमा था, | स्वाधीन-वि० [सं०] १ जो पराधीन न हो. मात्मनिर्भर, षडानन, स्कन्द ।
____ स्वतंत्र मुक्त । २ किसी नियंत्रण से परे, निरंकुश । स्वामीद्रोह-पु० [सं० स्वामिन-द्रोह अपने मालिक का विरोध, | स्वाधीनपतिका-स्त्री० [सं०] वह नायिका जिसका पति उसके स्वामी के प्रति विद्रोह, बलवा ।
• वश में हो। स्वामीद्रोही-वि० अपने मालिक का विरोध या विद्रोह करने । स्वाध्याय-पु० [सं०] वेदों का निरंतर अभ्यास करने की क्रिया वाला।
| या ढंग। २ किसी गंभीर विषय का भली प्रकार अध्ययन । स्वामीधरम (घरम्म, ध्रम, प्रम्म)-पु० [सं० स्वामिन-धर्म] | स्वापतेय, स्वापतेयक-पु० [सं० स्वापतेय] धन, दौलत। स्वामी के प्रति वफादारी, स्वामीभक्ति ।
स्वापद-पु० [सं० श्वापदः] १ हिंसक पशु । २ चीता। -वि. स्वामीधरमी (धरम्मी, प्रमो, प्रम्पो)-पु. अपने मालिक का ' हिंसक, भयंकर। वफादार, स्वाभीभक्त ।
स्वाभाविक-वि० [सं०] जो स्वभाव से उत्पन्न हुमा हो, स्वागत-पु० [सं० स्वागत] १ अगुवानी, अभिनंदन । २ उक्त प्राकृतिक । संभावित, जिसका होना माम बात हो। .
अवसर पर पूछा जाने वाला कुशल मंगल । ३ भागंतुक की | स्वायंत-पु०१ संतोष, शांति । २ देखो 'स्वाति'। खातिरदारो, भावभगत । ४ किसी प्रस्ताव, बात, विचार | स्वायंभु, स्वायंभुव, स्वायंभू-पु० [सं० स्वायंभुव मनुस्मृति प्रादि के प्रति प्रगट की जाने वाली खुशी, प्रास्था। नामक धर्म शास्त्र का कर्ता तथा प्रथम मन्वन्तर का ५ एक प्राचीन राजा।
अधिपति मनु । स्वात-पू० [सं०१ कश्यप एवं ब्रह्मधना के पुत्रों में से एक । | स्वार-देखो 'सूवारै'। २ देखो 'स्वाति'।
स्वारथ-पु० [सं० स्वार्थ] १ स्वयं का भला या हित सोचने की स्वातग-पु. १ चातक, पपीहा । २ देखो 'स्वाति'। .
क्रिया या भाव, मतलब। २ केवल अपना ही हित या स्वातज-पु० मोती, मुक्ता।
लाम । ३ उद्देश्य, प्रयोजन । स्वाति-पु० [सं०] १ मोती, मुक्ति । २ सत्ताईश नक्षत्रों में से | स्वारथता-स्त्री० खुदगर्जी, स्वार्थपरता।
पन्द्रहवां नक्षत्र । ३ सूर्य की एक पत्नी का नाम। स्वारथत्याग-पु. दूसरों के हित के लिये अपना हित या लाभ स्वातिसुत (सुतण, सुतन)-पु. मोती मुक्ता ।
- त्यागना। स्वाद-पु० [सं०] १ किसी वस्तु को खाने-पीने से रसनेन्द्रिय को
| स्वारथी-वि० [सं० स्वाथिन् । अपना मतलब सिद्ध करने माने वाला प्रानन्द,प्रनुभव जायका । २ किसी वस्तु का खट्टा,
वाला, खुद गर्ज, मतलबी। २ अपने हित या लाभ को मोठा, खारा प्रादि गुण, रस । ३ भोजन । ४ किसी बात
सर्वोपरि समझने वाला। ३ देखो 'सारथी'। का मानन्द, मजा । ५ संभोग। ६ प्राराम, सुख, प्रानंद ।
स्वाल-देखो 'सवाल'। ७ रस, भानंद। ८ इच्छा, कामना । ९ प्रादत, ऐब ।।
स्वास-पु० [सं० श्वासा] 1 तीव्र सांस चलने का रोग, दमा। १० मीठापन । ११ तत्त्व, सार। -वि. जायकेदार,
२ सांस । स्वादिष्ट ।
स्वासणि, स्वासणी-देखो 'सवासणी' ।
स्वासा-स्त्री० [सं० श्वासा] दक्ष प्रजापति की एक कन्या । स्वादिस्ट, स्वादिस्ठ-वि० [सं० स्वादिष्ठ] जिसका स्वाद प्रच्छा
स्वास्थ्य-पु० तंदुरुस्ती, निरोगता। हो. जायकेदार।
स्वाहा-स्त्री० पग्नि की पत्नी । -वि० १ जिसे जला कर नष्ट स्वावी-स्त्री० दाख, द्राक्ष । -वि० १ स्वाद वाला, स्वाद पूर्ण । __कर दिया गया हो, भस्म । २ पूर्णतया नष्ट । -प्रव्य० एक
२ स्वाद लेने वाला । ३ रसिक, रसिया। ४ हठी, जिद्दी। । शब्द जिसका उच्चारण यज्ञ में प्राहुति देते समय किया स्वादीलो-वि० (स्त्री. स्वादीली) १ स्वादयुक्त, स्वादिष्ट, जाता है। -पत, पति, पती-पु० अग्नि।
जायकेदार । २ स्वाद लेने वाला, स्वाद-रसिक। | स्वाहाग्रसरण, स्वाहाग्रहरण-पु० [सं० स्वाहा-ग्रसन्] देवता। स्वादु-पु० [सं० स्वादु] १ मधुर रस । २ गुड । ३ मीठास। स्वीकार-वि० [सं०] १ माना हुपा, मंजूर या न किया
४ महमा । ५ बेर । ६ दुग्ध, दूध । -वि०१ स्वादिष्ट, हुपा, अंगीकृत । २ जिस पर सहमति हो। जायकेदार। २ मधुर, मीठा। ३ मनोहर, प्रिय। स्वीकारणो (बी)-क्रि० १ अंगीकार करना, कबूल या मंजूर ४ स्वादिष्ट पदार्थ खाने का प्रादी, चट्ट।
करना । २ सहमति या अनुमति देना।
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