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पुरुषार्थसिनथुपाये सत्य और अनुभवका यथार्थ अर्थ मिनिमित्त ( निमित्त बिना---स्वाभाविक ) एवं अनिर्णीत होता है अथवा विशेष और सामान्य भो होता है अथवा साक्षर और निरक्षर भी होता है इत्यादि । स्वभावानुसार { बाय निमित्तके बिना ) जो पुदगलद्रव्यमें ध्यान या बचन या शब्द निकलते हैं वे सत्य ही निकलते हैं, परन्तु उन्हें कथंचित् सत्यवचन कहा जाता है इसलिये कि वे बचन किसी भी पदार्थको पूर्ण कहने में असमर्थ होते हैं, कुछ थोड़े धर्मको ही कहते व कह सकते हैं, सिर्फ स्वाभाविक परिणमन पुद्गलका होनेसे वे सत्य हैं कृत्रिम या (३) स्थापनासत्यका उदाहरण वह चन्द्रप्रभ भगवानको प्रतिमा है, ऐसा कथन या वचन स्थापनामिक्षेपसे
सत्य माना जाता है। (४) नामसत्यका उदाहरण----जैसे यह जिनदत्त है, देवदत्त है, इत्यादि नामरूप कथनके द्वारा सत्य माना
जाता है। (५) मुख्यसत्य-अनेक धमों या गुणोंमसे एकनाक मुख्यका कथन करना मुरूपसत्य कहलाता है, जैसे--
यह 'काला है' आदि । (६) इसी प्रकार प्रतीत्यसत्य, (७) व्यवहारसत्य, (८) संभावनासत्य, (९) आगमसत्य (भानसत्य) और (१०) उपमासत्य इनका भी स्वरूप जान लेना चाहिए ।
नौ प्रकारका अनुभव वचन आमंतणि आपणदणी याचनिया पुच्छगी 4* एगवणी । पच्या सवयी, इशानुलोमा य" ।।२२५।। पवमो अणवस्वरगदा" असचनमोसा हवति भासाओ ।
सोदारार्ण जम्हा वसादलस-संजण्या 1॥२२६||- जोकका अर्थ.....जो वचन न व्यक्त ( स्पष्ट) हो, न अव्यक्त ( अस्पष्ट ) हो यानि अनिर्णीत हो अर्थात् किसी प्रकारका निर्णय न हो सके, उस वचन या कथनको अनुभवत्रचन ( चौथा भेद ) कहते हैं । उसका परिचय नौ प्रकारके दृष्टान्त देकर कराया गया है अर्थात् नौ स्थानों या वाक्यप्रयोगोंमें प्रदर्शित किया गया है। जैसे-.--(१) आमंत्रणी किसीको जोरसे लाने में या टेरने में जब तक स्पष्ट उच्चारण न हो.....ठीक-ठीक शब्द, बोले जाय, न सुनाई पड़े, तब तक उनको अनुभयवचन भागना चाहिये । इसको आमंत्रण या सम्बोधन कहा जाता है। यहो आमंत्रणी भाषा है। (२) आज्ञावचन--किसीको आजा देना कि ऐला करी इत्यादि (३) याचनावचन---किसीसे कुछ मांगने के बदन । (४) पृच्छनावचन--किसीसे कुछ पूछनेके क्सन (५) प्रज्ञापनवचन--किसीको कुछ बताने या जाहिर करनेके वचन--सूचना देनेवाले वचन । (६) प्रत्याख्यानवलनत्यागने पा छोड़लेके बच्चन कि यह तुम छोड़ो आदि । (७) संशयवचन-जिसमें कोई निर्णय न हो सके। (८) इमछानुलोम प्रचन--पूछनेकालेकी इच्छापर फैसला देनेके बचन, कि जैसा चाहो सो करो इत्यादि। (९) अनक्षरत्रचन---इशारा या संकेतरूप बचन, जिसमें बचन न बोले जाय, सिर्फ गुनगुन-सा किया जाय इत्यादि । ये सत्र अस्प होनेसे अनुपयवाचभमें शामिल किये गये हैं। इनके सिवाय और भी अस्पष्ट या अव्यक्त कथन ( निरूपण-शब्दोच्चारण ) अनुभयवचनमें अन्तभूत होता है। विस्तारभयसे विशेष नहीं लिखाण शास्त्रमें देख लेना।