________________
प्रतिष्ठा
३४
मंदिरजीका प्राचीन यंत्र ।
भंडार
Jain Educational
आगम आ
विद्यालय सि
वि
नृत्य
अहं "
सा
幂
तीर्थ
hy
उ
पूजा
गीत
इति प्रथमो विभिः |
विद्वारं हृदये जिनेंद्रनिलये चाष्टोत्तरं सच्छतं विंवानां विनिवेशनं तदभितः प्रादक्षणीयक्रमः | अग्रे प्रेक्षणगेहमास्थितिगृहं माहेंद्रनामादिकं स्वच्छा पुष्करिणीत्यकृलिमजिनेशावासरूपा कृतिः॥ १३७ ॥
या तो प्रथम विधिरूप मंदिर कहया अब दूसरा विधि में ऐसे हैं कि- पूर्व उत्तर तो बड़ा द्वार अरु दक्षिणमें छोटा द्वार अरु बीचमें देवच्छंद कि वेदी तामैं एकसौ आठ गर्भगृह अर जिनबिंब अर चौतर्फ प्रदक्षिणा पर अग्रभागमें प्रेक्षागृह ताके पश्चात् आस्थान मंडप माहेंद्र नामक ताके पीछे पुष्करिणी वापिका ऐसे अकृत्रिम जिनभवनरूप रचना सो दूसरा विधान है ॥ १३७ ॥ इति द्वितीयो विधिः । पूर्वोत्तरं चोत्तरदिग्मुखं वा पार्श्वे सभायां श्रुतसंनिवेशः ।
मध्ये चतुष्कं सुविधानकारि तत्पूर्वमगे जिनसंस्थितिः स्यात् ॥ १३८ ॥
शास्त्र सभा
For Private & Personal Use Only
पाठ
३४
nelibrary.org