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प्रतिष्ठा
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BARMERICASSEURESCORRUPECIALIST
प्राप्त होउ, वृद्धि प्राप्त होउ। जिनशासन सदा वृद्धिंगत होउ ॥ अरहंतके अर्थि नपस्कार होउ। सिद्धनकू नपस्कार होउ । प्राचार्यनकू नमस्कार होउ । उपाध्यायनिकू नमस्कार होउ । ई लोकम सर्वसाधु हैं, तिनकू नमस्कार होउ ॥ अर चार मंगल होउ । श्रीअरहंत पंगल होउ । अर सिद्ध मंगल होउ। साधु मंगल होउ । अर केवलीकरि प्रणीत धर्म है सो मंगल होउ ॥ अर पारि लोकोत्तम हैं। श्रीअरहंत लोकोत्तम हैं। सिद्ध लोकोत्तम हैं। साधु लोकोत्तम हैं। अर केवली करि प्रणीत धर्म है सो लोकोत्तम है। च्यारिकी शरण प्राप्त
। श्रीअरहंतकी शरण प्राप्त हूं। सिद्धनकी शरण प्राप्त हूँ । साधूनकी शरण प्राप्त हूं। अर केवली-भणीत धर्म है ताकी शरण प्राप्त हूँ॥ ऐसे अनादिसिद्ध मत्रका अर्थ है। .
ओमद्य वेदीमंडपप्रतिष्ठायां, ततशुद्धयर्थ भावशुद्धये पूर्व आचार्यभक्तिश्रुतभक्तिपूर्व कायोत्सर्ग | कम्य।
ॐ अद्य' कहिए इस अवसर वेदीमंडपकी प्रतिष्ठाम , ताकी शुद्धिके अर्थि अरु भावनकी शुद्धिके अर्थि प्रथम आचार्यभक्ति अरु श्रतभक्ति पूर्वक में कायोत्सर्ग करूं हूँ॥
अथ यंत्रपूजा। अब यंत्र पूजा कहै हैं
परमेष्ठिन् ! मंगलादित्रय विघ्नविनाशने ।
समागच्छ तिष्ठ तिष्ठ मम सनिहितो भव ॥ २६३ ॥ हे पंच परमेष्ठी हो ! हे मगल लोकोत्तम शरण ! इहां आवहु, तिष्ठहु तिष्ठहु, मेरे समीप होउ ॥ २६३ ॥
ओं अवसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुप मष्ठिन् ! गल लोकोत्तम !! शरणभूत !!! अत्रावतर अव Hd तर संवौषट् (आह्वाननं), अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः (स्थापनं), अत्र मम संनिहितो भव भव वषट् ।। (संनिधिकरणं)।
CCESSPANGALOREKKERGRESS
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