Book Title: Pratishthapath Satik
Author(s): Jaysenacharya, 
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 228
________________ प्रतिष्ठा पाठ २२२ नोवली पेरा अंतरमन ही मनोवलऋद्धिमाप्त ये षु कृतश्रुताचा KEERIORSARKARRESGRRECRPOSER अंतर्मुहूर्तसमये सकलश्रुतार्थसंचितनेऽपि पुनरुद्भटसूत्रपाठाः । स्वच्छा मनोऽभिलषिता रुचिरस्ति येषां कुर्यान्मनोबलिन उत्तममांतरं मे ॥ ६८५॥ अरु जे अंतर्मुहूर्तमात्रकालमै संपूर्ण शास्त्रका संचितनमें भी पुन दणो भयो है शास्त्रको पाठ जिनकै अरू स्वच्छ मनको रुचि जिनकै | होय ते मनोवली मेरा अंतरंमने उत्तम करौ ॥६ ॥ ओं ही मनोबलऋद्धिमाप्ते भ्योऽर्यम् । जिह्वाश्रुतावरणवीर्यशमक्षयाप्तावंतर्मुहूर्त्तसमयेषु कृतश्रुतार्थाः। प्रश्नोत्तरोत्तरचयैरपि शुद्धकंठदेशाः सुवाक्यवलिनो मम पांतु यज्ञं ॥ ६८६॥ अरु जे जिला इंद्रिय तथा श्रुतावरण अरु वोर्या तराय कर्मका क्षयोपशुपकी प्राप्ति अंतहत कालमैं समस्त शास्त्रका अर्थचिंतन करें अरु प्रश्नोत्तरनिका उत्तरसंचयनकरि शुद्ध कंठ प्रदेश है ते वचनवली मुनींद्र मेरा यज्ञकी रक्षा करो॥६६॥ __ओं ह्रीं वचनवलऋद्धिमाप्त भ्योऽयम् । मेर्वादिपर्वतगणोद्धरणेषु शक्ता रक्षःपिशाचशतकाटिवलाधिवीर्याः । मासनुवत्सरयुगाशनमोचनेऽपि हानिन कायवलिनः परिपूजयामि ।। ६८७ ॥ अरु मेरु आदि पवैतनिका गणका उठायनमै समर्थ अरु राक्षस भूत पिशाचनिका काटि से कडाका पराक्रम अधिक है वीर्य जिनका अरु महीना दोय महीना संवत् युग आदि पर्यंत भोजनका त्यागमैं भो जिनका शरीरवलको हानि नहीं होय ते कायवली मुनींद्र हैं तिनिनै पूजू हूं ॥६८७॥ ओं ही कायवलऋद्धिमाप्तेभ्योऽर्धम् । स्पर्शात्करांहिजनिताद् गदशांतनं स्यादामर्षजा यव इति प्रतिपत्तिमाप्तान् । (१) येषां च वायुरपि तत्स्पृशतां रुजार्तिनाशाय तन्मुनिवरागधरां यजामि ॥१८॥ सरकऊलखनऊछन्न २१२ Jain Education a l For Private & Personal Use Only Avilibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316