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धिनमः, परयावधिक नमः। ओं ह्रौं वल्गुवल्गुनिवल्गुसुश्रवणे ओं ऋषभादिवर्धपानांतेभ्यो वौषट् स्वाहा इनि मंत्रनिकरि भी प्रतिमा प्रतिष्ठा अंगनै स्पशैं। २५७
[४ तथा ओं णमो भयवदो बहुमाणस्स रिसहस्स.........आदि वर्धमान मंत्र है या करि भी अंग स्पर्शन करें। अन्य विवन पर भी स्पर्श ||| करै ऐसे आकार शुद्धिने करि जय जय शब्द उच्चारण करि ऐरावत पर प्रारूद करि सुपेरुते राजगृह प्रति भगवानने ल्यावै।
श्लोकास्तथाहिसर्वान् मुरानधिकृतव्यवहारनिष्ठानुद्दिश्य राजगृहमापयितुं सुरेशः।
श्राज्ञापयत्ववगतप्रमदाभिवृद्धिः स्वं स्वं नियोगमधिकृत्य कृतार्थभूतान् ।। ७६१ ॥ सुरेश इद्र है सो प्राप्त भया है प्रमोदको वृद्धि जाकै ऐसो हुवो संतो सर्व देवनिने अपने अपने अधिकारमें निपुणनिने उपदेश करि प्रभूने राजगृह प्रति ल्यावे आज्ञा करें पर अपना अपना नियोगने पाय सव देव कृतार्थ भये ॥७६१॥
गंधर्वकिंपुरुषगीतपुरस्सरेण नृत्यत्सुरेशललनागणविभ्रमेण ।
दौवारिकाद्यधिकृतेंद्रजयस्वनेन देवाधिदेवमनयत् पितृसद्मधाम ॥ ७६२॥ इंद्र है सो गंधर्व जाति तथा किंपुरुष जाति देवनिका गानयुक्त अर नृत्य करता इंद्रादि देवांगनाका समूहका विभ्रम करिअर द्वारमें अधिकृत आदि इंद्रनिका जय जय शब्द करि श्री देवादिदेवने पिताका गृह प्राप्त करतौ भयौ ॥ ७६२॥
तत्रागतौ प्रवरमौक्तिकचूर्णपूर्णरंगावलीलिखितपुष्पकमंडनानि ।
राजांगणप्रथमतोरणयोरधस्तात् शच्या पुरंधिषु पुरस्कृतया कृतानि ।। ७६३ ॥ तहां भगवानका आगमन समय राजांगणका तोरणद्वयके नीचा भागमें बहुत पोतीनका चर्ण करि पूर्ण रंगावलीके लिखित फूलनिके P मांडना इंद्राणी सौभाग्यवती स्त्रियोंके अग्रभूत जो है ताकरि किये ॥७६३ ॥
- बारार्तिकेषु मणिरत्नशिखोच्चयेषु पुष्पांजलिप्रकर इंद्रमखाधिराड्भ्यां ।
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