Book Title: Pratishthapath Satik
Author(s): Jaysenacharya, 
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 290
________________ प्रतिष्ठादा २८४ C TEREONLAORASHREE अणाहिणिहणाणं बलिबाहुबलिसदाणं वीरे वीरे ओं अंत सेणवीरे वड्माणवीरे णहसंजयंतवराईए बज्जसिलयंभपयाणं सस्सदवंभपहियाणं उसहाइवीरमंगलमहापुरिसाणं णिचकालपइठियाणं इत्थसंणिहिया मे भवंतु मे भवंतु ठः ठःक्षत स्वाहा । इति मंत्रेण मुखादग्रं वयवनिकां दरमुत्सारयेत्।। इति श्रीमुखोद्घाटनं । ऐसे श्लोक मंत्र पढनके पीछे 'नों उसहादि वड्ढमाणाणं' आदि (ऊपर लिखे) यंत्रकरि श्रीमुखत अग्र वस्त्र पडदाने दूर करै। येह मुखोदघाटन विधान है। तदनंतरमेव रुक्मपात्रस्थितकपूरयुक्तसुवणशलाका दक्षिणपाणौ विधृस सोऽहं स इनि ध्यायनाचार्यों नयनोन्मीलनयंत्रे प्रदर्घ्य श्लोकपियं पठेत् । येनाबद्धनिरूढकर्मविकृतिप्रालंबिका निघणं छिन्नात्मानमर्ज स्वयंभुवमपूर्वीयं स्वयं प्राप्तवान् । सोऽयं मोक्षरमाकटाक्षसरणिप्रेमास्पदः श्रीजिनः साक्षादत्र निरूपितः स खलु मां पायादपायात्सदा ॥८६७॥ जाने बंधने प्राप्त भये गाढे कर्मनिका विकाररूप पडदा निदय होय छेदने प्राप्त किया अर आत्माने अजन्म स्वयंभूरूप अपूर्व पर्यायने प्राप्त || किया सो येह मोक्षरूपी लक्ष्मीका कटाक्षका मागमें ममको स्थानक श्रीजिन इहां निरूपण कियो सो मोने संसारपापते रक्षा करौ सदा ॥८६॥ अओं णमो अरांताणं णाणदंसणचक्खुमयाणं अमियरसायणविमलतेयाणं संतितुढिपुहिवरदसम्मादिहोणं वं में अमियवरसीणं स्वाहा। इति स्वर शलाकया नेत्रोन्मीलनं कुर्यात् । ततः सद्यव मूरिमंत्रेण सर्वज्ञत्वोपलंभनं विदध्यात् । ओं णमो अररांताणं णाणदंसणचक्खुमयाणं अमियरसायणविमलतेयाणं संतितुद्धिपुहिवरदसम्मादिट्ठीणं वं झ अमियवरसोणं स्वाहा। यह मंत्र पढे ता पीछे तत्काल मूरिमंत्र है उस करि सर्वज्ञपणा प्राप्त करें। REARCRASHISHTRAINECHA का यह स onal For Private & Personal Use Only alibrary.org Jain Educati in

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