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अथ ज्ञानकल्याणं । ऐसा मानि ज्ञान कल्याणका पूजन करैतत्र तावदनंतचतुष्टयस्थापनं। ततो घातिक्षयजदशातिक्षयस्थापनं ततोऽपि देवकाचतुर्दशातिशयस्थापनं। ततः समवसरणं मातिहार्यो-18 पास्तिश्च । तथाहि
प्रथम अनंत चतुष्टय स्थापन ताके पीछे घातियाका नाशत उत्पन्न भया दश अतिशय स्थापन करे। ता पोछै देवकृत चोदह अतिशयका स्थापन करणा। ता पीछे समवसरण स्थापन तथा मंडल पूजा करणी।
कैवल्यसूचिशरसंख्यकवर्तिकाभिरारार्तिकं बहुलवाद्यनिनादपूर्वं ।
श्रीमज्जिनप्रतिकृतेः शतयज्ञयज्ञाचार्या विदध्युरमलं जयघोषणाग्रं ॥८६८॥ इंद्र अरु यजमान आचार्य जे हैं ते श्रीमान् जिनको प्रतिमाके अग्र जय घोषणा पूर्वक आरति करें॥८६८॥
ओं ह्रीं ज्ञानकल्याणपाप्ताय जिनायार्यम् । चतुरवर्तिकाद्योतनं च कुर्यात् । अव चतुर्वंशतितोथज्ज्ञान कल्याण कतिथीनुद्दिश्य अध्य| पाद्यानि कार्याणि। ओं ह्रीं ज्ञान कल्याण प्राप्त जिनेद्रके अर्थ अर्घ देना। पर इहां हो चोईस तोथंकरोंका ज्ञान कल्याण तिथिको उद्देश्यकरि अघपाय करना।
सत्तामात्रग्राहकं दर्शनं च तदभेदानां ग्राहकं ज्ञानमुक्तं ।
ताभ्यां स्वास्थ्यं पूर्णमुक्तं सुखं तच्छक्तर्व्यक्तिर्वीयमलार्चयामि ॥ ८६६ ॥ वस्तुको सत्तामात्र ग्रहण करनेवाला दर्शन है अर ताके विशेष ग्रहण करै तो ज्ञान है, अर तिनत जो पूण स्वस्थता सो सुख कहा है पर तिनकी शक्तिकी प्रगटता है सो वार्य है। ऐसें भगवानके अनंतरूप हैं ताहि मैं पूजू है ॥६६॥
ओं ह्रीं नमोऽहते भगवतेऽनंतज्ञानदर्शनसुखवीर्यविभ्राजते जिनायाघम् । प्रों हो अहंत अर्थि नमस्कार होह। अनंत दर्शनवज्ञानसुखवीर्यका धारी जिनेंद्र अर्थि अर्घ देना।
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