Book Title: Pratishthapath Satik
Author(s): Jaysenacharya,
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur
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पाठ
ओं सत्तक्खरगब्भाणं अरहंताणं णमाथि भावेण ।
जो कुणइ अणण्णमणो सो गच्छइ उत्तमं ठाणं ।
इति पदाग्रस्थापितयववलयापसारणं कुर्यात् । ततःइस मंत्रकरि यववलयका अपसारण करें। पोछ
ओं केवलणाणदिवायरकिरणकलावप्पणासियण्णाणे । णवकेवललधुग्गमसुजाणयपरमप्पववएसो॥ असहायणाणदंसणमहिनो इदिकेवली होदि । जोयेण जुत्तो ति सजोणिजिणो अणाहिणिहणारिसे वुत्तो । इत्येपोऽर्हन् साक्षादवतीणों विश्वपाविति स्वाहा।
इति प्रतिपाग्रे पुष्पांजलिः। ऐसा पढ़ि पुष्पांजलि प्रतिमाका अग्रभागमें क्षेपणी।
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