Book Title: Pratishthapath Satik
Author(s): Jaysenacharya, 
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

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Page 304
________________ प्रतिष्ठा AURANGAESAR ओं ह्रीं मोक्षतत्त्वस्वरूपमिरूपकाय जिनायाम् । ___ओं ह्रीं मोक्षतत्त्वका निरूपण कर्ता जिनेंद्रकू अघ । देवोऽर्हन् सकलामयव्यपगतो दृष्टेष्टवाग्देशको भव्यर्द्धगतरागदोषकलनो मोक्षार्थिभिः श्रेयसे । आश्रेयः परिसेवनीय उदितज्ञानप्रभौघः स्वयं ___ शास्ता सर्वहितः प्रमाणपटुभिध्येयो जिनः पातुः नः ॥ ८॥ प्रहत देव है सो ही देव है, समस्त पापरूप रोगरहित अर प्रत्यक्ष अनुपानादिकरि अबाधित उपदेशका दाता है अर रागद्वेषकी कलितारहित अर महाभाग भव्यनिकरि मोक्षके अभिलाषीनिकरि आत्मकल्याणके अर्थि पाश्रय करने योग्य है पर सेवनीय है अर प्रगट भयी ज्ञानकी प्रभाका धारी है पर स्वयं उपदेशक सर्व हितकारी है सो ही प्रमाण नातिधारी पुरुषनिकरि ध्यान करिवे योग्य ऐसा प्राप्त जिन हमारी रक्षा करौ॥६॥ ओं ही प्रात्मस्वरूपप्ररूपक जिनायाघम् । भों हीं प्राप्तस्वरूप निरूपक जिनेंद्रकू अर्धे । रागद्वेषकलंकपंककणिकाहीनो विसंवादको निर्वाछो हितदेशनो व्रतगुणग्रामाग्रगण्यः प्रभुः । अस्माकं भवपद्धतावनुसरवाधादितानां महा. नाराध्यः प्रियकारको गुरुरयं प्रोक्तो जिनेन त्वया ॥८९७॥ अर रागद्वेषरूप कलंकककी कणिकाकरि रहित अर विसंवाद नहीं करनेवारा अर वांछाकरि रहित अर हित उपदेशका दाता अर गुणनिका अर व्रतनिका समूहमैं अग्रगामी अर प्रभु अर संसारमागमें अनुसरण करनेवारे हमारेकू भवातापबाधा पेटिवेकू आराधन योग्यार है ऐसा हे जिनेन तेने प्रियकारक गुरु कया है।८६७॥ IESGRREARRIES Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only Similibrary.org

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